
कनाडा में हाल ही में हुए फेडरल चुनावों में पंजाबियों ने एक बार फिर अपना दमखम दिखाया है। इस बार रिकॉर्ड 22 पंजाबी उम्मीदवार हाउस ऑफ कॉमन्स (कनाडा की संसद) के लिए चुने गए हैं। यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले 2021 में 18 और 2019 में 20 पंजाबी सांसद चुने गए थे।
इस बार 65 पंजाबी उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे, जिनमें से 22 ने जीत दर्ज की है। इससे साफ है कि कनाडा की राजनीति में पंजाबी समुदाय की पकड़ और मज़बूत हो रही है।
ब्रैम्पटन में पंजाबी उम्मीदवारों का दबदबा
ब्रैम्पटन क्षेत्र की पाँचों सीटों पर पंजाबी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। इनमें से कुछ खास मुकाबले इस तरह रहे:
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रੂਬी सहोता (लिबरल) ने ब्रैम्पटन नॉर्थ से अमंदीप जज (कंजरवेटिव) को हराया।
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मनिंदर सिद्धू (लिबरल) ने ब्रैम्पटन ईस्ट से बॉब दोसांझ (कंजरवेटिव) को हराया।
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अमंदीप सोही (लिबरल) ने ब्रैम्पटन सेंट्रल से तरन चाहल को हराया।
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सुखदीप कंग (कंजरवेटिव) ने ब्रैम्पटन साउथ से सोनिया सिद्धू (लिबरल) को हराया।
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अमरजीत गिल (कंजरवेटिव) ने ब्रैम्पटन वेस्ट से मंत्री कमल खेरा को मात दी।
लिबरल पार्टी के प्रमुख पंजाबी विजेता
लिबरल पार्टी से कई जाने-पहचाने पंजाबी चेहरे फिर से संसद पहुंचे हैं:
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अनीता आनंद (ओकविल ईस्ट)
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बरदीश चग्गर (वाटरलू)
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अंजू ढिल्लों (डोरवल-लाचीन)
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सुख ढालीवाल (सरे न्यूटन)
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इकविंदर सिंह गहीर (मिसिसागा-माल्टन)
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रणदीप सराय (सरे सेंट्रल)
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गुरबक्श सैनी (फ्लीटवुड-पोर्ट कैल्स)
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परम बैंस (रिचमंड ईस्ट-स्टीवनस्टन)
कंजरवेटिव पार्टी के पंजाबी विजेता
कंजरवेटिव पार्टी से भी कई पंजाबी चेहरे जीतकर आए:
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जसराज हालन (कैलगरी ईस्ट)
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दलविंदर गिल (कैलगरी मैकनाइट)
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अमनप्रीत गिल (कैलगरी स्काईव्यू)
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अरपन खन्ना (ऑक्सफोर्ड)
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टिम उप्पल (एडमिंटन गेटवे)
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परम गिल (मिल्टन ईस्ट)
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सुखमन गिल (एबट्सफोर्ड साउथ लैंगली)
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जगशरण सिंह माहल (एडमिंटन साउथईस्ट)
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हरब गिल (विंडसर वेस्ट)
जगमीत सिंह और कमल खेरा को बड़ा झटका
इस चुनाव में दो बड़े पंजाबी नेता हार का सामना करते नज़र आए। जगमीत सिंह, जो एनडीपी के अध्यक्ष और दो बार के सांसद थे, बर्नाबी सेंट्रल से तीसरे स्थान पर रहे और हार के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।
वहीं, कनाडा की स्वास्थ्य मंत्री कमल खेरा को भी हार का सामना करना पड़ा। उन्हें ब्रैम्पटन वेस्ट से अमरजीत गिल ने हराया।
कनाडा की संसद में पंजाबी प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बार की 22 सीटों की जीत न सिर्फ गर्व की बात है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारतीय मूल के नेता अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक मज़बूत भूमिका निभा रहे हैं।