डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट: ऐतिहासिक निम्नतम स्तर पर पहुँचा भारतीय रुपया
भारतीय रुपया एक बार फिर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। यह गिरावट देश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती और भारत में आयात-निर्यात असंतुलन जैसे कारकों ने रुपये को कमजोर किया है।
रुपये की स्थिति
बुधवार को शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर 84.92 पर पहुँच गया। यह दर मंगलवार की बंद कीमत 84.91 रुपये प्रति डॉलर से एक पैसे नीचे है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया इसी कीमत पर खुला, जो पिछले दिनों के मुकाबले मामूली गिरावट को दर्शाता है।
इस बीच, डॉलर इंडेक्स, जो अमेरिकी डॉलर की स्थिति को छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मापता है, 0.03% गिरकर 106.92 पर पहुँच गया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड की कीमत 0.03% बढ़कर 73.21 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
आयात-निर्यात और महंगाई पर प्रभाव
रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा प्रभाव आयातित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर पड़ता है। भारत जैसे देश, जो भारी मात्रा में तेल और अन्य वस्तुओं का आयात करते हैं, रुपये की कमजोरी के कारण आयातित वस्तुएँ महंगी हो जाती हैं। इससे महंगाई पर दबाव बढ़ता है और आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ता है।
विदेशी निवेशकों का रुख
मंगलवार को विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार में शुद्ध 6,409.86 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। इस भारी बिकवाली ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाने का काम किया।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की यह कमजोरी कई वैश्विक और घरेलू कारकों का नतीजा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर की मजबूती और घरेलू स्तर पर बढ़ता आयात-निर्यात असंतुलन रुपये पर भारी पड़ रहा है। इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और ब्याज दरों में वृद्धि ने भी रुपये को कमजोर किया है।
स्थिति में सुधार की जरूरत
आर्थिक विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि रुपये की स्थिरता के लिए निर्यात बढ़ाने, विदेशी निवेश आकर्षित करने और आयात पर निर्भरता कम करने जैसे उपायों की जरूरत है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को भी रुपये की स्थिति को स्थिर करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे।
रुपये की यह गिरावट देश की आर्थिक स्थिरता के लिए एक चुनौती है, और इसके प्रभाव से उबरने के लिए जल्द ही ठोस नीतिगत कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।