सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक के मामले में बड़ा फैसला दिया। इस शख्स को अपनी दूसरी पत्नी को 12 करोड़ रुपये गुजारा भत्ते के रूप में देने का आदेश दिया गया है। यह मामला इसलिए भी खास है क्योंकि यह शख्स पहले ही अपनी पहली पत्नी को तलाक के दौरान 500 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता दे चुका है।
दूसरी शादी भी असफल
आईटी कंसल्टेंसी चलाने वाले इस व्यक्ति ने 31 जुलाई 2021 को दूसरी शादी की थी। हालांकि, यह शादी एक साल भी नहीं टिक पाई और दोनों के बीच विवाद हो गया। इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की।
दूसरी पत्नी ने अपने जवाब में पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ते की मांग की। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बीवी नागरत्ना और पंकज मिथल शामिल थे, ने महिला की इस मांग को अनुचित बताते हुए खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तलाक और गुजारा भत्ते के कानून के महत्व पर जोर दिया। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “भरण-पोषण का कानून तलाकशुदा पत्नी को अभाव से बचाने, उसकी गरिमा बनाए रखने और सामाजिक न्याय प्रदान करने के लिए है। यह कानून जीवनसाथी की संपत्ति के बराबर गुजारा भत्ता देने के लिए नहीं है।”
गुजारा भत्ता और संपत्ति के बराबर की मांग पर सवाल
महिला की यह मांग कि उसे अपने पति की संपत्ति के बराबर गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “हमें पार्टियों द्वारा दूसरे पक्ष की संपत्ति के बराबर भरण-पोषण मांगने पर आपत्ति है। यह केवल सामाजिक न्याय के उद्देश्यों के खिलाफ है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भरण-पोषण की रकम तय करते समय पति की संपत्ति, आय और पत्नी की जरूरतों का संतुलन रखा जाना चाहिए।
संपत्ति के बराबर भरण-पोषण की मांग अनुचित
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 73 पन्नों के फैसले में स्पष्ट किया कि भरण-पोषण का उद्देश्य महिला को गरिमामय जीवन जीने में मदद करना है, न कि उसे पति की संपत्ति के बराबर अधिकार देना। बेंच ने कहा कि तलाक के बाद दोनों की संपत्ति अलग हो चुकी होती है, इसलिए ऐसी मांगें अनुचित हैं।
महत्वपूर्ण संदेश
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता का उद्देश्य केवल आर्थिक सहायता प्रदान करना है। यह कानून संपत्ति के बराबर धनराशि देने के लिए नहीं बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे मामलों में दिशा-निर्देश देने वाला साबित हो सकता है, जहां भरण-पोषण की राशि को लेकर विवाद होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के माध्यम से तलाक और गुजारा भत्ता से जुड़े कानून की सही व्याख्या की है। यह फैसला उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो तलाक के बाद गुजारा भत्ता की रकम को लेकर अनुचित मांग करते हैं। अदालत ने सामाजिक न्याय और गरिमा के मूल सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हुए यह सुनिश्चित किया कि कानून का दुरुपयोग न हो।