अमेरिकी मुद्रा की मजबूती और विदेशी पूंजी के निरंतर बाहिर जाने के बीच शुक्रवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया 8 पैसे गिरकर अपने सर्वकालिक निचले स्तर 85.35 प्रति डॉलर पर पहुंच गया। विशेषज्ञों के अनुसार, महीने और साल के अंत में भुगतान की ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आयातकों द्वारा डॉलर की बढ़ी हुई मांग ने डॉलर को मजबूत किया, जिससे स्थानीय मुद्रा पर दबाव पड़ा।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और घरेलू बाजारों से सकारात्मक संकेतों ने रुपया के नुकसान को सीमित कर दिया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 85.31 प्रति डॉलर पर कमजोर खुला। शुरुआती सौदों के बाद यह गिरकर 85.35 प्रति डॉलर के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह गुरुवार के बंद स्तर 85.27 से 8 पैसे की गिरावट को दर्शाता है।
गुरुवार को भी रुपया 12 पैसे की गिरावट के साथ 85.27 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। इस सप्ताह के अंत में रुपया लगातार गिरावट दर्ज कर रहा है, जिसका मुख्य कारण विदेशी पूंजी का लगातार देश से बाहर जाना और डॉलर की मांग में वृद्धि है।
डॉलर इंडेक्स और कच्चे तेल की स्थिति
इस दौरान, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को मापने वाला डॉलर इंडेक्स 0.04 प्रतिशत की बढ़त के साथ 107.93 पर बना हुआ है। यह डॉलर की मजबूती को दर्शाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बात करें तो ब्रेंट क्रूड 0.07 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ 73.31 डॉलर प्रति बैरल पर रहा। कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता से भारतीय रुपये पर अत्यधिक दबाव नहीं पड़ा।
विदेशी निवेशकों की बिक्री का दबाव
भारतीय शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) गुरुवार को शुद्ध विक्रेता रहे। उन्होंने कुल 2,376.67 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। विदेशी निवेशकों द्वारा हो रही लगातार बिकवाली भी रुपये पर दबाव डालने का एक बड़ा कारण है।
रुपये पर असर डालने वाले कारक
मौजूदा स्थिति में, आयातकों द्वारा डॉलर की बढ़ती मांग, विदेशी पूंजी के बाहर जाने और अमेरिकी डॉलर की मजबूती जैसे कारकों ने रुपये को कमजोर किया है। हालांकि, घरेलू शेयर बाजारों में सकारात्मक रुख और कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता ने रुपये के नुकसान को सीमित किया है।
आगे की संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि डॉलर की मांग इसी तरह बढ़ती रही, तो रुपये में और कमजोरी देखने को मिल सकती है। इसके अलावा, विदेशी निवेशकों की बिक्री का सिलसिला जारी रहा तो भारतीय मुद्रा पर इसका और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये को स्थिर बनाए रखने के लिए बीच-बीच में हस्तक्षेप कर सकता है। इसके साथ ही, यदि घरेलू बाजार में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ता है और वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें स्थिर रहती हैं, तो रुपये को कुछ राहत मिल सकती है।
भारतीय रुपये का गिरना देश की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है। लगातार गिरावट से आयात महंगा होगा और मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ेगा। इसके लिए नीतिगत कदम उठाने और विदेशी पूंजी के प्रवाह को बढ़ाने की आवश्यकता होगी, ताकि रुपये की स्थिति को स्थिर किया जा सके।