बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) [JDU] के नेता नीतीश कुमार को साथ आने का प्रस्ताव दिया है। वहीं, नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर कोई सीधा खंडन करने के बजाय इसे हंसी में टाल दिया। उनके इस रवैये ने पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया है।
नीतीश का पलटने का इतिहास
नीतीश कुमार समकालीन भारतीय राजनीति में ऐसे नेता हैं, जिन्होंने बार-बार पाला बदलकर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है। पिछले एक दशक में वे चार बार गठबंधन बदल चुके हैं और बिहार की सत्ता में अपनी पकड़ बरकरार रखी है। लालू प्रसाद यादव का यह कहना कि “नीतीश के लिए हमारे दरवाजे खुले हैं,” उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार की इस लचीली रणनीति ने उन्हें बिहार की राजनीति में अहम बनाकर रखा है। इसी वजह से लालू यादव की यह पहल किसी अप्रत्याशित कदम का संकेत हो सकती है।
NDA खेमे के समीकरण
नीतीश कुमार के इस राजनीतिक संभावनाओं को बल बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के आंतरिक समीकरणों से भी मिल रहा है। हाल ही में अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के मौके पर उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा ने कहा था कि “अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब बिहार में BJP की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बने।”
हालांकि, सिन्हा ने जल्द ही अपने बयान से किनारा कर लिया, लेकिन यह संकेत दे गया कि BJP बिहार की राजनीति में JDU की भूमिका सीमित करने के प्रयास में है। इससे यह धारणा मजबूत होती है कि नीतीश कुमार BJP से दूरी बनाकर नए विकल्पों की तलाश कर सकते हैं।
दिल्ली में नीतीश की अनदेखी
बीते हफ्ते नीतीश कुमार की दिल्ली यात्रा के दौरान उनकी कथित अनदेखी भी चर्चा का विषय बनी। खबरें आईं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नीतीश से मुलाकात के लिए समय नहीं दिया। इस घटना ने JDU और BJP के बीच बढ़ती दूरियों की ओर इशारा किया।
तेजस्वी यादव की रणनीति
दूसरी ओर, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव फिलहाल नीतीश कुमार के साथ आने की किसी संभावना के पक्ष में नहीं दिखते। उनकी प्राथमिकता साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव पर है। तेजस्वी मानते हैं कि अगर अभी नीतीश कुमार को साथ लिया गया, तो यह कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा कर सकता है।
राष्ट्रीय राजनीति का दृष्टिकोण
राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है कि BJP के लिए नीतीश कुमार का साथ केंद्र सरकार के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, 2029 के लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं, इसलिए नीतीश फिलहाल केंद्रीय सत्ता के समीकरण बिगाड़ने का कोई कदम नहीं उठाना चाहेंगे।
चर्चाओं का दौर जारी
बिहार में लालू-नीतीश की पुरानी केमिस्ट्री के दोबारा जीवित होने की संभावना ने राजनीतिक विश्लेषकों और जनता के बीच हलचल पैदा कर दी है। बिहार की राजनीति में गठबंधन बदलने और नए समीकरण बनने का इतिहास रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में नीतीश कुमार और लालू यादव की राजनीति किस दिशा में जाती है।
(यह खबर वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर तैयार की गई है और भविष्य में घटने वाली घटनाओं पर निर्भर करेगी।)