भारतीय रुपये ने 10 जनवरी 2025 को एक नया रिकॉर्ड बनाते हुए अपने ऑल टाइम लो पर पहुंच गया। शुक्रवार को एक डॉलर की कीमत 85.97 रुपये तक पहुंच गई। इससे पहले गुरुवार को भी रुपये ने एक नया निचला स्तर हासिल किया था, जब डॉलर के मुकाबले एक रुपये की कीमत 85.93 पैसे थी। यह लगातार तीसरा दिन था जब रुपया अपने पिछले निचले रिकॉर्ड से नीचे बंद हुआ। इसके अलावा, यह लगातार दसवां हफ्ता है, जब रुपये में गिरावट दर्ज की गई है।
क्यों गिर रहा है रुपया?
रुपये में गिरावट की प्रमुख वजह डॉलर की मजबूती और कमजोर कैपिटल फ्लो है। वर्तमान में डॉलर इंडेक्स 109 के ऊपर बना हुआ है, जो लगभग दो साल के उच्चतम स्तर के बराबर है। इस वजह से अमेरिकी मुद्रा की ताकत बढ़ी है, जबकि भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ा है। इसके अलावा, अमेरिकी नॉन-फार्म पेरोल डेटा की घोषणा का बाजार में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है, जो फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है।
आरबीआई का हस्तक्षेप
रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने कुछ कदम उठाए हैं। शुक्रवार को आरबीआई के निर्देशों पर कुछ सरकारी बैंकों ने डॉलर बेचा, जिससे रुपये की गिरावट को सीमित करने में मदद मिली। हालांकि, यह साफ है कि रुपये पर दबाव बना रहेगा।
आगे क्या हो सकता है?
मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा कि रुपये पर दबाव भविष्य में भी बना रह सकता है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजारों की कमजोर स्थिति, मजबूत डॉलर और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FII) की लगातार निकासी रुपये पर निगेटिव प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में उछाल भी रुपये पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि रुपये की गिरावट को रोकने के लिए घरेलू निवेशकों को मजबूत कदम उठाने होंगे। इससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और रुपये को स्थिरता मिल सकेगी।
वैश्विक परिस्थितियों का असर
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं भी रुपये की गिरावट में एक महत्वपूर्ण कारण हैं। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, वैश्विक बाजारों की अस्थिरता और अन्य आर्थिक चुनौतियां भारतीय रुपये पर दबाव डाल रही हैं। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर की मजबूती भी रुपये के गिरने का मुख्य कारण बनी हुई है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि आरबीआई के हस्तक्षेप से रुपये की गिरावट पर कुछ नियंत्रण पाया गया है, लेकिन मौजूदा वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के चलते रुपये की स्थिति में स्थिरता लाना आसान नहीं होगा।
निरंतर चुनौतियां
रुपये की गिरावट के साथ-साथ घरेलू और वैश्विक आर्थिक चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में उछाल और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें रुपये को और कमजोर कर सकती हैं। इसके अलावा, वैश्विक वित्तीय अनिश्चितताओं का असर रुपये पर जारी रहेगा।
रुपया वर्तमान में अपने ऑल टाइम लो पर पहुंच चुका है, और आने वाले दिनों में भी इसके और गिरने की संभावना हो सकती है। हालांकि, आरबीआई के हस्तक्षेप ने कुछ हद तक रुपये की गिरावट को नियंत्रित किया है। भारतीय रुपये की स्थिति को सुधारने के लिए घरेलू और वैश्विक आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो रुपये के लिए आने वाले दिनों में और चुनौतियां सामने आ सकती हैं।