प्रयागराज: महाकुंभ के पावन अवसर पर मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के लिए करोड़ों श्रद्धालु संगम तट पर पहुंचे, लेकिन देर रात संगम नोज पर भारी भीड़ के चलते भगदड़ मच गई। इस दर्दनाक हादसे में 30 लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जनों घायल हो गए। प्रशासन की सतर्कता और सुरक्षा इंतजामों के बावजूद यह हादसा कैसे हुआ? आखिर किन कारणों से मेला क्षेत्र में ऐसी स्थिति बनी? आइए जानते हैं इस भगदड़ के पीछे के प्रमुख कारण।
1- संगम नोज पर अचानक बढ़ी भीड़
महाकुंभ मेले में श्रद्धालुओं को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने अलग-अलग होल्डिंग एरिया बनाए थे, लेकिन इनका सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया। रात आठ बजे के बाद श्रद्धालुओं को संगम की ओर भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे नौ बजे तक संगम पर अत्यधिक भीड़ इकट्ठी हो गई। इतनी बड़ी संख्या में लोगों के एक साथ पहुंचने से भगदड़ जैसी स्थिति बन गई।
2- वन-वे प्लान हुआ फेल
प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एक वन-वे प्लान बनाया था, जिसमें श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग रास्ते तय किए गए थे। उन्हें काली सड़क से त्रिवेणी बांध पार कर संगम अपर मार्ग से संगम नोज तक पहुंचना था और स्नान के बाद अक्षयवट मार्ग से वापस लौटना था। लेकिन यह योजना पूरी तरह से विफल रही। श्रद्धालुओं ने एक ही रास्ते से प्रवेश और निकासी की कोशिश की, जिससे भीड़ अनियंत्रित हो गई और भगदड़ की स्थिति पैदा हो गई।
3- बंद रखे गए पांटून पुल
मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 30 पांटून पुल बनाए गए थे, लेकिन प्रशासन ने इनमें से 10 से अधिक पुलों को बंद रखा। इससे झूंसी और अन्य इलाकों से आने वाले श्रद्धालुओं को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। अधिक चलने के कारण बुजुर्ग और महिलाएं संगम नोज पर ही बैठने लगीं, जिससे वहां जगह की कमी हो गई और हालात बिगड़ गए।
4- बैरिकेडिंग और बंद रास्तों से बढ़ी समस्या
मेले में भीड़ प्रबंधन के लिए प्रशासन ने कई प्रमुख सड़कों को चौड़ा किया था, लेकिन इनमें से कई को बंद रखा गया। इसके अलावा, कुछ मुख्य रास्तों पर बैरिकेडिंग कर दी गई, जिससे श्रद्धालुओं को एक ही दिशा में लगातार चलते रहना पड़ा। इससे वे संगम तट पर जाकर रुक गए और वहां भीड़ बढ़ती गई।
5- सुरक्षाबलों की तैनाती में लापरवाही
मेले के सुरक्षा प्रबंधन के लिए CISF और अन्य सुरक्षाबलों की तैनाती की गई थी, लेकिन इनका कैंप सेक्टर-10 में स्थित था। जब भगदड़ मची, तो सुरक्षा बलों को घटनास्थल तक पहुंचने में काफी समय लगा। यदि प्रत्येक सेक्टर में सुरक्षाबलों के छोटे कैंप लगाए गए होते, तो हालात जल्दी नियंत्रण में आ सकते थे।
6- श्रद्धालुओं को देर रात संगम की ओर भेजना
प्रशासन ने श्रद्धालुओं को रात आठ बजे से संगम नोज की ओर भेजना शुरू किया, जिससे रात में भारी भीड़ इकट्ठी हो गई। अगर यह प्रक्रिया देर रात दो बजे के बाद शुरू की जाती, तो भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता था। श्रद्धालु व्यवस्थित तरीके से स्नान कर मेले से बाहर निकल सकते थे और भगदड़ जैसी स्थिति नहीं बनती।
प्रशासन की सफाई और भविष्य की योजना
हादसे के बाद प्रशासन ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। अधिकारियों का कहना है कि भीड़ नियंत्रण के लिए सभी जरूरी कदम उठाए गए थे, लेकिन अचानक उमड़ी भीड़ ने सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती दे दी। प्रशासन अब भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बेहतर प्लानिंग और सुरक्षा उपायों पर काम करने की बात कर रहा है।
श्रद्धालुओं में दहशत, मेला क्षेत्र में शोक
हादसे के बाद मेला क्षेत्र में भय और अफरा-तफरी का माहौल है। श्रद्धालु इस घटना से आहत हैं और मृतकों के परिजनों में गहरा शोक व्याप्त है। सरकार ने मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने और घायलों के बेहतर इलाज की घोषणा की है।
यह हादसा एक बार फिर से बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की कमजोरियों को उजागर करता है। प्रशासन को भविष्य में बेहतर रणनीति और योजनाओं के साथ तैयार रहना होगा ताकि लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के इस महापर्व में सुरक्षा की कोई कमी न रह जाए।