
कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और कारोबारी रॉबर्ट वाड्रा एक बार फिर जांच एजेंसियों के घेरे में हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाल ही में उनसे करोड़ों की जमीन खरीद और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक पुराने मामले में पूछताछ की है। यह मामला हरियाणा के गुरुग्राम जिले में साल 2008 में हुई एक जमीन डील से जुड़ा है।
वाड्रा की पैदल यात्रा बनी चर्चा का विषय
पूछताछ के दिन वाड्रा अपने घर से ED के दफ्तर तक करीब दो किलोमीटर पैदल चले। उन्होंने मीडियाकर्मियों के सामने खुद को बेकसूर बताया और कहा कि यह सब कुछ राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है। उनका कहना था कि जब भी वे अल्पसंख्यकों के हक़ में बोलते हैं, तो उन्हें निशाना बनाया जाता है।
क्या है मामला?
वर्ष 2008 में वाड्रा की कंपनी ‘स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी’ ने गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में 3.5 एकड़ जमीन ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से खरीदी थी। यह सौदा 7.5 करोड़ रुपये में हुआ था।
आरोप है कि इस जमीन का म्यूटेशन (हस्तांतरण प्रक्रिया) कुछ ही घंटों में कर दिया गया, जो आमतौर पर हफ्तों लगते हैं। फिर मार्च 2008 में, हरियाणा सरकार ने वाड्रा की कंपनी को इस जमीन पर कमर्शियल कॉलोनी बनाने की अनुमति दे दी।
फिर कैसे बढ़ा विवाद?
जून 2008 में, वाड्रा की कंपनी ने वही जमीन DLF को 58 करोड़ रुपये में बेच दी। मतलब सिर्फ कुछ महीनों में लगभग 50 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया गया।
यह सब उस वक्त हुआ जब हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे। हुड्डा के पास नगर नियोजन विभाग (Town & Country Planning) का जिम्मा भी था।
क्या हैं आरोप?
2018 में सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र शर्मा ने इस डील को लेकर FIR दर्ज कराई। उनका कहना है कि वाड्रा, हुड्डा और DLF ने आपस में साजिश करके यह सौदा किया और सरकारी नियमों की अनदेखी की।
FIR में वाड्रा और हुड्डा समेत DLF और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार की धाराएं लगाई गईं। साथ ही आरोप यह भी है कि इस डील के बदले DLF को वजीराबाद में 350 एकड़ जमीन आवंटित की गई, जिससे उन्हें 5,000 करोड़ रुपये का फायदा हुआ।
खेमका की एंट्री और विवाद
हरियाणा के आईएएस अफसर अशोक खेमका ने इस डील की जांच की और 2012 में वाड्रा और DLF के बीच हुआ म्यूटेशन रद्द कर दिया। खेमका ने इस डील को “फर्जी लेनदेन” बताया।
खेमका के इस फैसले के बाद उनका तबादला कर दिया गया, जिससे मामला और विवादास्पद बन गया।
क्या हुआ अब तक?
ED ने वाड्रा को पहले 8 अप्रैल को पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन वे हाजिर नहीं हो सके थे। बाद में उन्होंने खुद से तारीख मांगी और अब पूछताछ में शामिल हुए हैं।
वाड्रा का कहना है कि उन्होंने जांच एजेंसियों का हमेशा सहयोग किया है और आगे भी करते रहेंगे।
यह मामला सिर्फ एक जमीन सौदे का नहीं, बल्कि राजनीति, नौकरशाही और बड़े कॉरपोरेट घरानों के बीच कथित मिलीभगत का है। आने वाले दिनों में यह केस फिर से सुर्खियों में रह सकता है, खासकर चुनावी माहौल में, जब हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश होती है।