
देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने बुधवार को वक्फ कानून पर सुनवाई करते हुए एक बेहद अहम बात कही। उन्होंने कहा, “जब हम जज किसी केस की सुनवाई करते हैं, तब हम यह भूल जाते हैं कि हमारा धर्म क्या है। हमारे लिए दोनों पक्ष एक समान होते हैं।” उन्होंने यह टिप्पणी उस समय की जब सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान एक दलील दी, जिससे यह संकेत गया कि धर्म का असर जजों की सोच पर पड़ सकता है।
यह मामला वक्फ एक्ट के संशोधन से जुड़ा है, जिसमें वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। कई याचिकाकर्ताओं ने इस पर आपत्ति जताई है, और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
क्या हिंदू ट्रस्ट में गैर-हिंदू शामिल हो सकते हैं?
सुनवाई के दौरान सीजेआई खन्ना के साथ जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस संजय कुमार भी बेंच में शामिल थे। बेंच ने केंद्र सरकार से पूछा कि अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जा सकता है, तो क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों के बोर्ड में मुस्लिम या अन्य अल्पसंख्यकों को भी शामिल करेगी?
बेंच ने तिरुमला तिरुपति मंदिर का उदाहरण देते हुए सवाल उठाया कि हिंदू मंदिरों के कितने बोर्डों में गैर-हिंदू लोग हैं? इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि उन्हें सिर्फ एक ही उदाहरण याद आ रहा है — हिंदू धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, जो सिर्फ हिंदुओं द्वारा संचालित होता है।
SG मेहता के बयान पर कोर्ट की सख्त प्रतिक्रिया
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने दलील दी कि अगर बेंच यह कह रही है कि धार्मिक ट्रस्ट में सिर्फ संबंधित धर्म के लोग ही होने चाहिए, तो इस तर्क से मौजूदा बेंच को भी वक्फ से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।
इस पर सीजेआई ने सख्ती से प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“नो सॉरी मिस्टर मेहता, हम जज जब बेंच पर बैठते हैं, तब हमारा धर्म मायने नहीं रखता। लेकिन जब किसी धार्मिक संस्था या ट्रस्ट के संचालन की बात होती है, तो हम ऐसे सवाल जरूर पूछ सकते हैं।”
जस्टिस खन्ना ने आगे यह भी कहा कि मान लीजिए किसी हिंदू ट्रस्ट में एक रिसीवर नियुक्त किया जाए, जिसमें सभी सदस्य हिंदू हैं, तो क्या उसकी तुलना जजों से की जा सकती है? उन्होंने SG मेहता के तर्क को पूरी तरह से अवास्तविक और अनुचित करार दिया।
वक्फ बोर्ड में कितने गैर-मुस्लिम?
केंद्र सरकार की तरफ से SG मेहता ने बताया कि वक्फ एक्ट के संशोधित कानून के अनुसार, वक्फ बोर्ड में केवल दो ही गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं। इसमें भी वे एक्स-ऑफिशियो सदस्य होते हैं यानी जो अपने पद के कारण बोर्ड में होते हैं। कोर्ट ने पूछा कि 22 सदस्यीय बोर्ड में सिर्फ 2 गैर-मुस्लिम क्यों? इस पर मेहता ने कहा कि यही संसदीय समिति की सिफारिश है और इसे कानून में शामिल किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में इस सुनवाई ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि न्यायपालिका धर्म से ऊपर होती है। सीजेआई की यह टिप्पणी खासतौर पर महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह साफ करती है कि अदालतें किसी भी धर्म, जाति या विचारधारा से परे जाकर फैसले करती हैं।
अब देखना होगा कि कोर्ट इस मामले में वक्फ कानून के संशोधनों पर क्या अंतिम फैसला सुनाती है।