
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की ओर से हो रही फायरिंग और शेलिंग ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में तबाही मचा दी है। इस हिंसा में कई लोगों की जान चली गई, कई परिवार उजड़ गए और दर्जनों लोग घायल होकर अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। कई गांवों में लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं और अब राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। ऐसे ही पीड़ितों में शामिल हैं जपनीत कौर, जिनकी कहानी हर किसी की आंखें नम कर देती है।
पिता को बचाते-बचाते खुद को खो बैठे अमरीक सिंह
जपनीत कौर ने अपने पिता अमरीक सिंह को पुंछ में हुए हमले में खो दिया। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए अपने दर्द को शब्दों में बयां किया। उन्होंने कहा, “वह हमें बचाने की कोशिश कर रहे थे। सोच रहे थे कि किसी तरह उनके बच्चे सुरक्षित रहें, लेकिन हम उन्हें नहीं बचा पाए। हमें क्या पता था कि दो मिनट में सब कुछ खत्म हो जाएगा।”
‘क्या हमारे लिए भी कोई ऑपरेशन होगा?’
जपनीत कौर के मन में सिर्फ दुख ही नहीं, बल्कि गहरी नाराजगी भी है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उनके पिता की मौत का कोई जवाब मिलेगा। उन्होंने कहा, “पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर चला। लेकिन हमारे लिए क्या? क्या पुंछ में मारे गए लोगों के लिए भी कोई ऑपरेशन चलेगा? क्या हमारे पिता की जान की कोई कीमत नहीं?”
राहत शिविर में बैठा है पूरा परिवार
जपनीत ने बताया कि उनके पूरे परिवार को राहत कैंप में रहना पड़ रहा है। “शेलिंग इतनी ज्यादा थी कि हमें समझ ही नहीं आया कि कहां जाएं। अब हम सब एक कैंप में बैठे हैं। हमारे सामने मेरे पिता की लाश पड़ी है और हम कुछ नहीं कर पा रहे। मेरी मां, भाई और बाकी लोग सब डरे हुए हैं। हर आवाज से डर लगने लगा है।”
‘दुख वही समझ सकता है जिसने अपना खोया हो’
जपनीत ने कहा कि बाहर बैठे लोग तो सिर्फ खबरें देखते हैं, बयान सुनते हैं, लेकिन असल दर्द वही जान सकता है जिसने अपना कोई अपना खोया हो। उन्होंने कहा, “कई लोग कहते हैं कि सीजफायर नहीं होना चाहिए, संघर्ष जारी रहना चाहिए। लेकिन अगर उनके घर में कोई मारा गया होता, तो शायद उनकी सोच कुछ और होती।”
पुंछ में बिगड़ते हालात
पुंछ में हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। लगातार फायरिंग के कारण कई गांव खाली हो चुके हैं। लोगों को स्कूल, पंचायत घरों और अस्थायी राहत शिविरों में शिफ्ट किया जा रहा है। प्रशासन की ओर से जरूरी सहायता दी जा रही है, लेकिन डर का माहौल बना हुआ है।
पुंछ की जपनीत कौर की कहानी हजारों उन परिवारों की आवाज है, जो सीमा पर हो रही गोलीबारी का शिकार बनते हैं। उनके सवाल सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय चिंता को दर्शाते हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार और सेना इस दर्द का जवाब कैसे देती है और क्या वाकई पुंछ के शहीदों को भी न्याय मिलेगा।