
भारतीय बाजार में सोने की कीमतों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। जो सोना कुछ हफ्ते पहले ₹1,00,000 प्रति 10 ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था, वह अब गिरकर ₹92,000 प्रति 10 ग्राम तक आ गया है। यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोने की चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है। अप्रैल 2024 में सोना जहां $3,500 प्रति औंस तक पहुंचा था, वहीं अब यह घटकर $3,140 प्रति औंस रह गया है।
क्या आगे और गिरेगा सोना?
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट रुकने वाली नहीं है। साल 2024 की शुरुआत में निवेशकों को सोने से जो जबरदस्त रिटर्न मिला था, वैसा प्रदर्शन आगे देखने को मिलना मुश्किल है। हालांकि, लंबी अवधि के निवेश के लिए सोना अब भी एक सुरक्षित विकल्प माना जा रहा है।
सोने की इस गिरावट के पीछे कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू आर्थिक कारण हैं। पहला कारण है भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव में आई कमी। 12 मई 2025 को दोनों देशों के बीच संघर्षविराम की घोषणा के बाद निवेशकों ने सोने जैसे सुरक्षित निवेश से दूरी बनानी शुरू कर दी, जिससे मांग घटी और कीमतें नीचे आईं। दूसरा कारण है अमेरिका में 10 साल के सरकारी बॉन्ड यील्ड का 4.5% से ऊपर जाना, जिससे डॉलर मजबूत हुआ और सोना अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगा होकर मांग में कमी का शिकार हुआ।
तीसरा बड़ा कारण अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव में कमी है। दोनों देशों के बीच टैरिफ में कटौती को लेकर बनी सहमति ने वैश्विक निवेशकों को जोखिमभरे एसेट्स की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया है। इससे सोने की मांग कम हुई है। चौथा कारण है मुनाफा वसूली का दबाव। अप्रैल 2025 में जब सोना अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा, तब कई निवेशकों ने मुनाफा बुक करना शुरू कर दिया, जिससे बाजार में बिकवाली बढ़ी और कीमतें नीचे आ गईं। पांचवां कारण शेयर बाजारों में आई तेज रफ्तार है। दुनियाभर के इक्विटी मार्केट में मजबूती के चलते निवेशक अब शेयरों की ओर आकर्षित हो रहे हैं और सोने से पैसा निकाल रहे हैं।
इन परिस्थितियों में निवेशकों को संयम से काम लेने की जरूरत है। अगर आपने पहले ही सोने में निवेश किया हुआ है तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। सोना दीर्घकालिक निवेश के लिए अब भी बेहतर विकल्प बना हुआ है। लेकिन अगर आप अभी निवेश करने की सोच रहे हैं, तो थोड़ा रुककर बाजार की स्थिरता का इंतजार करना समझदारी होगी। कुल मिलाकर, सोने की कीमतों में आई यह गिरावट केवल सामान्य उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक बदलावों और निवेश धाराओं के कारण है।