बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव की स्थिति चिंताजनक है। 5 अगस्त को शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद देश में हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। अंतरिम सरकार के गठन के बाद से कट्टरपंथी ताकतें सक्रिय हो गई हैं, जो हिंदुओं को सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर रही हैं। यह स्थिति देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैले सरकारी संस्थानों में देखी जा रही है, खासकर शिक्षण संस्थानों और पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों में।
विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का इस्तीफा
बांग्लादेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदू शिक्षकों को इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला जा रहा है। हाल ही में चटगांव विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के सहायक प्रोफेसर रोंटू दास को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया। प्रोफेसर दास का इस्तीफा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की बात कही। ऐसा माना जा रहा है कि इस इस्तीफे का कारण अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार है। इसी तरह के मामले अन्य विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में भी सामने आए हैं, जहां हिंदू शिक्षकों को उनकी जाति और धार्मिक पहचान के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
ईशनिंदा के आरोप और सोशल मीडिया पोस्ट
हिंदू शिक्षकों और प्रोफेसरों के इस्तीफे लेने के लिए उन पर ईशनिंदा के झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं या उनके सोशल मीडिया पोस्ट को मुद्दा बनाकर दबाव डाला जा रहा है। यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है। कई बार शिक्षकों को उनके कथित “विवादास्पद” सोशल मीडिया पोस्ट के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जाता है, जो कि एक गंभीर स्थिति को दर्शाता है। इस प्रकार का भेदभाव और उत्पीड़न शिक्षकों की पेशेवर और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है।
पुलिस अकादमी में हिंदू कैडेट्स पर संकट
मामला सिर्फ शिक्षकों तक सीमित नहीं है, बल्कि पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे हिंदू कैडेट्स भी इस भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। शारदा पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण पूरा कर चुके 252 सब-इंस्पेक्टर्स में से 91 हिंदू कैडेट्स को “अनुशासन और अनियमितता” के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया। इस निकाले जाने के बाद, कई हिंदू कैडेट्स ने सोशल मीडिया पर अपने दर्द को साझा किया। एक हिंदू प्रशिक्षु असित ने अपने निष्कासन पर लिखा, “बांग्लादेश में मेरे साथ बिना किसी भेदभाव के भेदभाव किया गया।”
पासिंग परेड रद्द और नियुक्तियों पर संकट
बांग्लादेश में पुलिस अकादमी में 20 अक्टूबर को 60 से अधिक एएसपी रैंक के अधिकारियों की पासिंग आउट परेड को रद्द कर दिया गया, जिससे इन अधिकारियों की नियुक्ति पर अनिश्चितता बनी हुई है। यह परेड बांग्लादेश में अधिकारियों की औपचारिक नियुक्ति का प्रतीक होती है, और इसे रद्द करना कट्टरपंथियों द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिये पर धकेलने का प्रयास माना जा रहा है। यह कदम न केवल पुलिस अधिकारियों की नियुक्तियों पर असर डालता है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों पर भी सवाल खड़े करता है।
अंतरिम सरकार और कट्टरपंथियों का प्रभाव
शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद से अंतरिम सरकार में कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव बढ़ गया है। इन ताकतों ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को प्रोत्साहित किया है, जिससे हिंदू समुदाय के लोगों में भय का माहौल है। सरकार के पतन के बाद से देश में कट्टरपंथियों का वर्चस्व बढ़ा है, जो अल्पसंख्यकों को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। इस स्थिति ने अल्पसंख्यक समुदाय के लिए शिक्षा, सुरक्षा और रोजगार के क्षेत्र में गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। सरकारी नौकरियों में हिंदू कर्मचारियों और प्रशिक्षुओं को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। इस प्रकार का भेदभावपूर्ण रवैया न केवल सामाजिक संतुलन को कमजोर कर रहा है, बल्कि एक समुदाय को हाशिये पर धकेलने का प्रयास है। इस स्थिति से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों को बांग्लादेश पर दबाव डालना चाहिए ताकि हिंदू अल्पसंख्यकों को समान अधिकार मिल सकें।