ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए समय पर इलाज बेहद महत्वपूर्ण होता है। यदि मरीज साढ़े चार घंटे के भीतर अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं, तो उनका इलाज मुश्किल हो जाता है। ऐसे में एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में स्ट्रोक के मरीजों के मस्तिष्क की नसों में हुए ब्लॉकेज को दूर करने के लिए क्लॉट बस्टर इंजेक्शन देने का ट्रायल चल रहा है। इस ट्रायल के शुरुआती नतीजे डॉक्टर सकारात्मक बता रहे हैं।
ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की संख्या
डॉक्टरों के अनुसार, हर साल भारत में करीब 17 लाख लोग ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित होते हैं। इनमें से लगभग 65 से 70 प्रतिशत मरीज मस्तिष्क की नसों में खून का थक्का जमने या ब्लॉकेज के कारण इस्केमिक स्ट्रोक से ग्रसित होते हैं। इस बीमारी में मस्तिष्क की नसों में ब्लॉकेज होने से रक्त संचार प्रभावित होता है, जिससे मस्तिष्क के एक हिस्से में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
क्लॉट बस्टर इंजेक्शन का महत्व
वर्तमान में स्ट्रोक के इलाज के लिए मरीज को साढ़े चार घंटे के भीतर क्लॉट बस्टर इंजेक्शन दिया जाना चाहिए। यह इंजेक्शन देने के लिए सीटी स्कैन जांच की जाती है, और उसके बाद डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार इसे देते हैं। हालांकि, मौजूदा प्रोटोकाल के अनुसार, स्ट्रोक होने के साढ़े चार घंटे बाद यह इंजेक्शन नहीं दिया जा सकता है। इसके चलते अधिकांश मरीज इस समय सीमा में अस्पताल नहीं पहुंच पाते, जिससे बहुत कम लोगों को यह इलाज मिल पाता है।
24 घंटे के भीतर इलाज का ट्रायल
एम्स में चल रहे ट्रायल के अंतर्गत, मरीजों को स्ट्रोक होने के साढ़े चार घंटे बाद से लेकर 24 घंटे के भीतर क्लॉट बस्टर इंजेक्शन देने का प्रयास किया जा रहा है। इस ट्रायल में अब तक करीब 50 मरीजों पर परीक्षण किया गया है और इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह देखना है कि अगर कोई मरीज स्ट्रोक होने के साढ़े चार घंटे बाद और 24 घंटे के भीतर अस्पताल पहुंचता है, तो उन्हें क्लॉट बस्टर इंजेक्शन देने से कितना फायदा होता है।
उम्मीद के संकेत
डॉक्टर अवध किशोर पंडित, जो कि एम्स के न्यूरोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने बताया कि इस ट्रायल में अच्छे संकेत मिल रहे हैं। उन्होंने बताया कि ट्रायल के तहत मरीजों की संख्या 100 तक पहुंचाई जाएगी और उसके बाद ट्रायल का परिणाम जारी किया जाएगा। यदि यह ट्रायल सफल होता है, तो इससे मरीजों को 24 घंटे के भीतर भी इलाज मिल सकेगा, जो उनकी जिंदगी और दिव्यांगता से बचाने में मददगार साबित हो सकता है।
स्टेंट रिट्रीवर का विकल्प
साढ़े चार घंटे के बाद अगर कोई मरीज अस्पताल पहुंचता है, तो उनके लिए स्टेंट रिट्रीवर डालकर नसों से रक्त थक्का दूर करने का विकल्प है। लेकिन यह सुविधा भी केवल कुछ चुनिंदा अस्पतालों में उपलब्ध है, जिससे मरीजों को परेशानी होती है।
ब्रेन स्ट्रोक एक गंभीर समस्या है, और समय पर इलाज न मिलने से कई मरीजों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। एम्स में चल रहे इस ट्रायल से स्ट्रोक के मरीजों के लिए नई उम्मीद जगी है। यदि यह प्रक्रिया सफल होती है, तो यह मरीजों की जान बचाने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होगी। सभी को यह समझना चाहिए कि स्ट्रोक के मामले में समय बहुत महत्वपूर्ण होता है, और अस्पताल पहुंचने में देरी से स्थिति गंभीर हो सकती है।