निजी जेट विमानों के बढ़ते उपयोग ने वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को चिंताजनक स्तर पर पहुंचा दिया है। हाल ही में स्वीडन के लिनियस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि 2019 से 2023 के बीच निजी जेट्स से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन 46 फीसदी बढ़ गया है। अध्ययन के अनुसार, नियमित रूप से निजी जेट उड़ाने वाले लोग वाणिज्यिक उड़ानों की तुलना में 500 गुना अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं, जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
अमेरिका में 70% निजी जेट्स, बड़े आयोजनों में उत्सर्जन चरम पर
अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया के 70% निजी जेट्स अमेरिका में स्थित हैं। इसके बाद ब्राजील, कनाडा, जर्मनी, मेक्सिको और यूके में निजी जेट्स की संख्या अधिक है। विशेष रूप से अमेरिका, जिसमें निजी जेट्स का सबसे बड़ा बाजार है, में वाणिज्यिक विमानों की तुलना में निजी विमानों से होने वाला उत्सर्जन काफी अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे बड़े आयोजन जैसे कि कॉप28 जलवायु सम्मेलन और फीफा वर्ल्ड कप के दौरान इन निजी जेट्स का उपयोग बड़े पैमाने पर होता है, जिससे लाखों टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि निजी जेट्स का उपयोग मुख्य रूप से समाज के सबसे अमीर तबके द्वारा किया जाता है, जो प्रति वर्ष औसतन 2,400 टन सीओ2 उत्सर्जन करते हैं। ऐसे में, जबकि दुनिया भर के देश ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के प्रयासों में जुटे हैं, निजी जेट्स का बढ़ता उपयोग इस प्रयास को चुनौती दे रहा है।
छह देशों में 80% से अधिक निजी विमान
अध्ययन के अनुसार, निजी विमानों का लगभग 80% हिस्सा दुनिया के छह देशों में पंजीकृत है। इनमें सबसे अधिक अमेरिका (लगभग 70%), इसके बाद ब्राजील (3.5%), कनाडा (2.9%), जर्मनी (2.4%), मेक्सिको (2%) और यूके (2%) में पंजीकृत हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन निजी विमानों का उपयोग दुनिया की आबादी का महज 0.003% वयस्क ही करते हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि निजी विमानों की कम यात्री क्षमता और उच्च ईंधन खपत के कारण ये प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में अत्यधिक योगदान करते हैं। एक व्यक्ति निजी जेट से जितना उत्सर्जन करता है, वह वाणिज्यिक विमान यात्रा की तुलना में कई गुना अधिक होता है। यह असमानता, समाज में अमीर और गरीब के बीच पर्यावरणीय असंतुलन को भी उजागर करती है, जहां एक छोटी आबादी अधिक उत्सर्जन कर रही है और पर्यावरणीय संकट को गहरा रही है।
2023 में निजी उड़ानों से 1.56 करोड़ टन सीओ2 उत्सर्जन
अध्ययन के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच कुल 1.86 करोड़ निजी उड़ानों के फ्लाइट ट्रैकर डेटा का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि 2023 में ही निजी उड़ानों के कारण 1.56 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ। यह संख्या उन देशों के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के बराबर है, जहां औद्योगिकीकरण कम है। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि यदि निजी जेट्स का उपयोग इसी प्रकार जारी रहा, तो पर्यावरणीय असंतुलन और जलवायु परिवर्तन के खतरे और भी गहरे होंगे।
अध्ययन से स्पष्ट है कि निजी जेट्स का बढ़ता उपयोग और उससे होने वाला कार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों के विपरीत दिशा में है। ये विमान न केवल वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ा रहे हैं, बल्कि उच्च वायुमंडलीय स्तर पर उत्सर्जन करके ओजोन परत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं।
निजी जेट्स के बढ़ते उपयोग को कम करने की जरूरत
जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए निजी जेट्स के उपयोग पर लगाम लगाने की जरूरत है। सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को ऐसे उपायों की ओर ध्यान देने की जरूरत है, जो निजी विमानों के अनावश्यक उपयोग को रोकने में सहायक हो। जलवायु संकट के इस दौर में विशेष रूप से निजी जेट का उपयोग करने वाले संपन्न वर्ग को इसके प्रतिकूल प्रभावों को समझना चाहिए और उन्हें पर्यावरण हितैषी विकल्पों का चयन करना चाहिए।
वर्तमान में, दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे कि कार्बन टैक्स और कड़े नियम। इन उपायों में निजी विमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि उनका अनावश्यक उपयोग सीमित हो सके।
अंततः, यह अध्ययन हमें सोचने पर मजबूर करता है कि कार्बन उत्सर्जन में असमानता, दुनिया की जलवायु नीति के लिए कितनी बड़ी चुनौती है। अगर अमीर तबके के लोग अपने निजी जेट्स के उपयोग में कमी नहीं लाते, तो जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास अधूरे रह जाएंगे और इसके नकारात्मक परिणाम पूरी दुनिया को भुगतने होंगे।