दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण हालात बहुत ही गंभीर हो गए हैं, जिससे नागरिकों का सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। प्रदूषण की चपेट में अब दिल्ली में घना धुंआ भी शामिल हो गया है, जो स्थिति को और अधिक विकट बना रहा है। इसी बीच, दिल्ली सरकार प्रदूषण से निपटने के लिए नकली बारिश बनाने की योजना बना रही है। इसके लिए जरूरी तैयारियां भी की जा चुकी हैं, और दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर इस योजना की मांग की है।
नकली बारिश की योजना और इसके लिए की जा रही तैयारियां
दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति बेहद खराब हो गई है, और इसे नियंत्रित करने के लिए दिल्ली सरकार ने ‘क्लाउड सीडिंग’ (नकली बारिश) की तकनीक का सहारा लेने का निर्णय लिया है। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक आकाश में एक निश्चित ऊचाई पर सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं। यह काम हवाई जहाज, बैलून, रॉकेट या ड्रोन के माध्यम से भी किया जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग 1940 के दशक से शुरू हुआ था, और अब तक दुनियाभर में 53 देशों में इसका प्रयोग हो चुका है। दिल्ली में 2019 में भी इसे लागू करने की कोशिश की गई थी, लेकिन बादल न होने और ISRO से अनुमति न मिलने के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।
इस प्रक्रिया में आकाश में उपस्थित नमी और बादलों की स्थिति का सही चयन करना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि मौसम सुखा हो तो पानी की बूँदें जमीन तक पहुंचने से पहले वाष्पित हो जाती हैं। अब, दिल्ली सरकार ने फिर से इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए कदम उठाए हैं, और इसके लिए अनुमानित खर्च 10 से 15 लाख रुपये तक हो सकता है। आईआईटी कानपुर की एक टीम ने इस पर रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें बताया गया है कि इस प्रक्रिया की लागत प्रति वर्ग किलोमीटर 1 लाख रुपये होगी।
नकली बारिश के फायदे और नुकसान
क्लाउड सीडिंग के कई लाभ हो सकते हैं:
- वायु प्रदूषण को कम करना: नकली बारिश वायु प्रदूषण को फैलने से रोकने में मदद करती है और धूल, धुएं, धुंध और रसायनों की घनत्व को घटाती है।
- कृषि के लिए लाभकारी: यह तकनीक सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति बढ़ा सकती है, जिससे कृषि की स्थिति सुधर सकती है।
- सर्दियों में बर्फबारी बढ़ाना: यह तकनीक पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी को बढ़ा सकती है, जिससे प्राकृतिक जल स्रोतों की आपूर्ति में वृद्धि हो सकती है।
- वन की आग बुझाने में मदद: नकली बारिश जंगलों में लगने वाली आग को बुझाने में भी मददगार साबित हो सकती है।
हालांकि, इस तकनीक के कुछ नुकसान भी हैं:
- मौसम की अनुकूल स्थिति की आवश्यकता: क्लाउड सीडिंग का प्रभाव तभी होता है जब बादल सही स्थिति में हों और मौसम अनुकूल हो।
- रासायनिक प्रभाव: सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन पौधों और पर्यावरण पर असर डाल सकते हैं, हालांकि इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर अभी तक कोई ठोस अध्ययन नहीं किया गया है।
- सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है: नकली बारिश हमेशा प्रभावी नहीं हो सकती है और यह प्राकृतिक बारिश जैसा प्रभाव नहीं छोड़ सकती।
- सीमित और अस्थायी प्रभाव: यदि प्रदूषण के असल कारणों पर नियंत्रण नहीं किया गया, जैसे कि वाहनों, उद्योगों और निर्माण कार्यों से होने वाला प्रदूषण, तो क्लाउड सीडिंग का प्रभाव सीमित और अस्थायी रहेगा।
दिल्ली में प्रदूषण और राहत के उपाय
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बहुत उच्च हो गया है, और यह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुका है। प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली में ग्रेप-4 (ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान) लागू किया गया है, लेकिन इसके बावजूद प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई है। इसके कारण स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का आदेश दिया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को भी 23 नवंबर तक ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करने का निर्देश दिया गया है।
दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं, लेकिन फिलहाल कोई ठोस समाधान नजर नहीं आ रहा है। प्रदूषण के कारण लोग सर्दी में भी मास्क पहनने को मजबूर हो गए हैं, और शहर की हवा में सांस लेना अब दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है।