भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया अलायंस’ ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ सदन में पक्षपातपूर्ण तरीके से काम कर रहे हैं और अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्षता के साथ नहीं कर रहे। इस प्रस्ताव को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत पेश किया गया है, जिसमें करीब 70 सांसदों के हस्ताक्षर हैं।
सभापति पर आरोप और विपक्ष की एकता
इस अविश्वास प्रस्ताव के पीछे प्रमुख कारण सभापति के कामकाज को लेकर विपक्ष की नाराजगी है। विपक्ष का कहना है कि धनखड़ ने सदन में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है और उनके फैसलों ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित किया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सभापति ने कई बार सदन की कार्यवाही में निष्पक्षता नहीं दिखाई और उन्होंने सत्तारूढ़ दल को तरजीह दी।
इस प्रस्ताव को लेकर विपक्षी दलों ने एकजुटता दिखाई है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), समाजवादी पार्टी (सपा) और अन्य छोटे दल इस प्रस्ताव के समर्थन में आ गए हैं। खास बात यह है कि टीएमसी और सपा, जो कई मौकों पर कांग्रेस से अलग राय रखती रही हैं, इस बार साथ आ गई हैं।
पहले भी दिखा था असंतोष
यह पहली बार नहीं है जब विपक्ष ने जगदीप धनखड़ के खिलाफ असंतोष जाहिर किया है। अगस्त में संसद के मानसून सत्र के दौरान भी विपक्ष ने उनके कामकाज पर सवाल उठाए थे और हस्ताक्षर अभियान चलाया था। लेकिन तब इस अभियान को आगे बढ़ाने का फैसला नहीं किया गया था। शीतकालीन सत्र में, विपक्ष ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का निर्णय लिया और अविश्वास प्रस्ताव लाने की रणनीति बनाई।
विपक्ष का रुख और रणनीति
राज्यसभा में विपक्ष का यह कदम मौजूदा राजनीतिक माहौल को और गरमाने वाला है। विपक्षी दलों का मानना है कि सभापति का रवैया सदन की गरिमा के खिलाफ है और यह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरनाक है। अविश्वास प्रस्ताव पेश करके विपक्ष यह संदेश देना चाहता है कि वह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
विपक्ष का यह आरोप है कि धनखड़ का कामकाज भाजपा सरकार के पक्ष में झुका हुआ है। विपक्ष को उम्मीद है कि यह प्रस्ताव उन मुद्दों को उजागर करेगा, जिन पर सरकार और सभापति को जवाब देना पड़ेगा।
अविश्वास प्रस्ताव के पीछे संख्या बल और चुनौती
राज्यसभा में विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या नहीं है कि वे इस प्रस्ताव को पारित करवा सकें। सत्तारूढ़ एनडीए के पास राज्यसभा में बहुमत है, और इस प्रस्ताव को पारित करना विपक्ष के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। लेकिन यह कदम केवल संख्या बल का मुद्दा नहीं है; यह विपक्ष की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
विपक्ष यह दिखाना चाहता है कि वे सत्तारूढ़ दल के खिलाफ एकजुट हैं और उनकी प्राथमिकता लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना है। प्रस्ताव में टीएमसी और सपा जैसे दलों का समर्थन इस बात का संकेत है कि विपक्ष की रणनीति व्यापक है।
राजनीतिक असर
यह प्रस्ताव संसद और बाहर, दोनों जगहों पर एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा। अगर प्रस्ताव खारिज होता है, तो सत्तारूढ़ दल इसे अपनी जीत के रूप में दिखा सकता है। वहीं, विपक्ष इसे अपनी एकता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए किए गए प्रयास के रूप में प्रस्तुत करेगा।
इस घटनाक्रम से आने वाले सत्रों में राजनीतिक तापमान बढ़ सकता है। राज्यसभा की कार्यवाही 11 दिसंबर तक स्थगित है, लेकिन यह मुद्दा इस अवधि में चर्चा और बहस का प्रमुख विषय बना रहेगा।
जगदीप धनखड़ के खिलाफ पेश किया गया यह अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति में विपक्ष और सरकार के बीच बढ़ते टकराव का प्रतीक है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुद्दे पर राज्यसभा और देश की राजनीति किस दिशा में जाती है।