सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) से जुड़े मामलों को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला पेंडिंग है, तब तक किसी भी नये मुकदमे को देशभर में किसी भी अदालत में दायर नहीं किया जाएगा। यह फैसला धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादों में तेजी से बढ़ते मामलों को लेकर आया है, जहां विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच तनाव बढ़ने का खतरा बना हुआ था।
18 मामले अदालतों में लंबित
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने की, ने यह जानकारी दी कि वर्तमान में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़े 18 मुकदमे देशभर की अदालतों में लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इन मामलों पर कोई फैसला नहीं करता, तब तक नए मुकदमे दायर नहीं किए जाएंगे। इस कदम का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव और शांति बनाए रखना है, ताकि किसी विवाद का और अधिक विस्तार न हो।
मुस्लिम पक्ष की अपील
सुनवाई के दौरान, मुस्लिम पक्ष ने यह अपील की कि न केवल नए मामलों पर रोक लगाई जाए, बल्कि जो मामले पहले से अदालतों में लंबित हैं, उन पर भी तुरंत रोक लगाई जाए। इस पर जस्टिस के वी विश्वनाथन ने सहमति जताते हुए कहा कि इस तरह के मामलों पर रोक लगाना जरूरी है, ताकि धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों को और अधिक बढ़ने से रोका जा सके।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (1991) का महत्व
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 ने धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान किया है। इस एक्ट के तहत, कोई भी धार्मिक स्थल, चाहे वह मंदिर हो, मस्जिद हो या गुरुद्वारा हो, उसकी स्थिति में बदलाव करना अवैध माना गया है। इसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक स्थल को विवाद का कारण बनने से बचाना था।
हालांकि, यह एक्ट हाल के वर्षों में कई विवादों का केंद्र बन चुका है, खासकर तब जब कुछ धार्मिक समूहों ने यह मांग की है कि इस कानून में बदलाव किया जाए। कुछ समूहों का कहना है कि यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को उनके धार्मिक स्थलों की स्थिति को ठीक करने के अधिकार से वंचित करता है। वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का मानना है कि इस कानून को धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने के लिए जरूरी है, क्योंकि अगर इसे बदल दिया गया तो सामाजिक सद्भाव में खलल पड़ सकता है।
केंद्र सरकार का जवाब लंबित
मार्च 2021 में, तत्कालीन CJI एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस एक्ट की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। यह याचिका वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यह दावा किया गया था कि यह कानून “सार्वजनिक व्यवस्था” के नाम पर बनाया गया है, और यह राज्य का विषय है, जिसे राज्यों को नियंत्रित करना चाहिए। इस मामले में केंद्र सरकार का जवाब अभी तक लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सामाजिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। कोर्ट का मानना है कि अगर इस समय नए मुकदमे दर्ज होते हैं, तो इससे विवाद और बढ़ सकते हैं, जो राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अदालत ने यह निर्णय भी लिया कि जब तक मामले पेंडिंग हैं, तब तक कोई नई याचिका दायर नहीं की जाएगी।
इस फैसले के बाद, अब यह देखा जाएगा कि क्या धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों में कोई और गंभीर मोड़ आता है, या सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से इन विवादों में शांति बनी रहती है। यह फैसला पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि कोर्ट धार्मिक मुद्दों को संवेदनशीलता से सुलझाना चाहता है और किसी भी नए विवाद को बढ़ने से रोकना चाहता है।