
हरियाणा के कैथल जिले की पुंडरी विधानसभा सीट एक अनोखी सीट है, जहां पिछले छह चुनाव से निर्दलीय उम्मीदवारों का वर्चस्व रहा है। 1996 से 2019 तक के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का यहां खाता नहीं खुला। इस बार 18 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें निवर्तमान विधायक रणधीर सिंह गोलन भी शामिल हैं। इस बार के चुनाव में गोलन को एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके लिए बड़ी चुनौती है। पुंडरी विधानसभा सीट का चुनावी परिणाम हर बार एक नई कहानी लेकर आता है, और इस बार भी यहां के मतदाताओं का फैसला महत्वपूर्ण होगा।
पुंडरी विधानसभा का चुनावी इतिहास
पुंडरी विधानसभा सीट का इतिहास वास्तव में दिलचस्प है। पुंडरी विधानसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से, बीजेपी यहां कभी भी जीत नहीं पाई है, जबकि कांग्रेस को चार बार जीत मिली है, जिसमें अंतिम बार 1991 में ईश्वर सिंह ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद, 1996 से 2019 तक के चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने सफलता प्राप्त की। 2019 के चुनाव में रणधीर सिंह गोलन ने कांग्रेस के सतबीर भाना को 12,824 वोटों के अंतर से हराया था। इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार वेदपाल एडवोकेट को भी हार का सामना करना पड़ा था। इस बार फिर दिनेश कौशिक, जो दो बार इस सीट से विधायक रह चुके हैं, चुनाव मैदान में हैं। उनका मुकाबला रणधीर सिंह गोलन और अन्य उम्मीदवारों से होगा।
पुंडरी विधानसभा क्षेत्र में रोड, ब्राह्मण और जाट वोटरों की संख्या अधिक है, जो इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। रोड समाज के छह उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जिससे रोड वोटों में बंटवारे का खतरा है। निवर्तमान विधायक रणधीर सिंह गोलन को एंटी इनकंबेंसी और बीजेपी समर्थन वापस लेने की वजह से नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। उनके किसानों के खिलाफ बयान ने भी उनकी दावेदारी को कमजोर किया है। इस बार निर्दलीय प्रत्याशी सतबीर भाना का पलड़ा भारी नजर आ रहा है, जो पिछले चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार थे। बीजेपी ने सतपाल जांबा और कांग्रेस ने सुल्तान जड़ौला को टिकट दिया है।