दिल्ली विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दल आधुनिक तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ईमेल, और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार कर रहे हैं। लेकिन, इस हाई-टेक रणनीति के बावजूद पारंपरिक साधन जैसे चिट्ठियां भी प्रभावी हथियार साबित हो रही हैं। हाल ही में आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को चिट्ठी लिखकर दो सवाल पूछे।
चिट्ठी में केजरीवाल ने सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर निशाना साधते हुए पूछा कि क्या आरएसएस बीजेपी के कथित कृत्यों का समर्थन करती है? उन्होंने बीजेपी नेताओं द्वारा कथित तौर पर पैसे बांटने और बड़े पैमाने पर दलितों और पूर्वांचलियों के वोट काटने के आरोप लगाए। केजरीवाल का दावा है कि बीजेपी जनतंत्र को कमजोर कर रही है और उन्होंने भागवत से यह स्पष्ट करने की मांग की कि आरएसएस इन गतिविधियों का समर्थन करती है या नहीं।
चिट्ठी के माध्यम से केजरीवाल की रणनीति
यह चिट्ठी सिर्फ आरएसएस पर सवाल उठाने का प्रयास नहीं है, बल्कि बीजेपी विरोधी वोटों को एकजुट करने की रणनीति है। केजरीवाल का मानना है कि आरएसएस पर हमला करने से वे बीजेपी विरोधी मतदाताओं का ध्यान खींच सकते हैं। कांग्रेस के संभावित समर्थकों को यह दिखाने की कोशिश हो रही है कि बीजेपी का असली और प्रभावी विरोधी केवल आम आदमी पार्टी है।
इसके अलावा, चिट्ठी में पूर्वांचलियों और दलितों के मुद्दों को उठाकर केजरीवाल इन समुदायों के भीतर बीजेपी के प्रति असंतोष को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका यह कदम दिखाता है कि वे दिल्ली के सामाजिक और जातीय समीकरणों को बखूबी समझते हैं।
बीजेपी का पलटवार
बीजेपी ने केजरीवाल की चिट्ठी का जवाब चिट्ठी के माध्यम से ही दिया। बीजेपी ने उन्हें नए साल पर दिल्ली की जनता के लिए सकारात्मक संकल्प लेने की सलाह दी। इस जवाबी हमले से बीजेपी ने केजरीवाल के आरोपों को हल्के में लिया और चुनावी नैरेटिव को बदलने की कोशिश की।
आरएसएस और केजरीवाल का संबंध
यह पहली बार नहीं है जब केजरीवाल ने आरएसएस को अपने निशाने पर लिया है। तीन महीने पहले भी उन्होंने मोहन भागवत को चिट्ठी लिखकर बीजेपी की नीतियों और आरएसएस के संबंधों पर सवाल उठाए थे। उस समय उन्होंने बीजेपी पर भ्रष्ट नेताओं को संरक्षण देने और विपक्षी नेताओं को तोड़ने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
केजरीवाल का मुख्य उद्देश्य आरएसएस और बीजेपी को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में दिखाना है। उनका कहना है कि बीजेपी का रिमोट कंट्रोल आरएसएस के हाथों में है। इसके साथ ही, वे यह भी साबित करना चाहते हैं कि आरएसएस के नेता केवल दिखावटी बयान देकर असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाते हैं।
चिट्ठी के असर और राजनीतिक संदेश
केजरीवाल का यह कदम एक तीर से दो निशाने लगाने जैसा है। यदि मोहन भागवत इस चिट्ठी का जवाब देते हैं, तो यह आम आदमी पार्टी के लिए राजनीतिक बढ़त का मौका होगा। वहीं, अगर आरएसएस चुप रहती है, तो केजरीवाल इसे आरएसएस की सहमति के रूप में प्रचारित कर सकते हैं।
चिट्ठी में उठाए गए दलित और पूर्वांचलियों के मुद्दे अब तक दिल्ली चुनाव का केंद्रीय विषय नहीं बने थे। लेकिन केजरीवाल ने इन मुद्दों को उठाकर एक नई बहस छेड़ दी है। इससे उन्हें इन समुदायों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का अवसर मिल सकता है।
दिल्ली के चुनावी माहौल में चिट्ठियां केवल संवाद का माध्यम नहीं रह गई हैं, बल्कि एक प्रभावशाली चुनावी हथियार बन गई हैं। अरविंद केजरीवाल और बीजेपी के बीच जारी यह पत्र-युद्ध न केवल पारंपरिक प्रचार के महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि चुनावी राजनीति में हर कदम रणनीतिक होता है।