
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव एक बार फिर सुर्खियों में है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़ा ऐलान करते हुए चीन से आने वाले सामानों पर 125% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह जानकारी उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर साझा की। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने 75 अन्य देशों पर लगे टैरिफ को फिलहाल 90 दिनों के लिए रोक दिया है, क्योंकि ये देश अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर बातचीत के लिए तैयार हैं।
भारत सबसे आगे – अमेरिकी वित्त मंत्री
व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने बताया कि भारत वह देश है, जो टैरिफ के मुद्दे पर अमेरिका से बातचीत करने में सबसे आगे है। उन्होंने साफ किया कि चीन पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ का मकसद सिर्फ आर्थिक दबाव बनाना नहीं, बल्कि ग्लोबल मार्केट में सही नियमों के तहत व्यापार सुनिश्चित करना है।
बेसेंट ने कहा, “चीन गलत तरीके से व्यापार करके पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में असंतुलन पैदा कर रहा है। इसीलिए यह टैरिफ सिर्फ चीन के लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए चेतावनी है जो व्यापारिक नियमों का उल्लंघन करते हैं।”
भारत, जापान और साउथ कोरिया से अहम बातचीत
स्कॉट बेसेंट ने आगे बताया कि अमेरिका इस समय टैरिफ और व्यापारिक समझौतों को लेकर जिन देशों से बातचीत कर रहा है, उनमें भारत, जापान और साउथ कोरिया प्रमुख हैं। ये सभी देश चीन के पड़ोसी हैं और वैश्विक व्यापार में अहम भूमिका निभाते हैं। अमेरिका का इरादा है कि जो देश आगे आकर ईमानदारी से बातचीत करेंगे, उनके लिए टैरिफ को घटाकर सिर्फ 10% तक किया जा सकता है। यह इन देशों के लिए एक तरह का इनाम होगा।
दुनिया अब अमेरिका की ओर – कैरोलिन लेविट
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने भी इस मौके पर मीडिया को संबोधित किया। उन्होंने कहा, “अब दुनिया चीन की ओर नहीं, बल्कि अमेरिका की ओर देख रही है। हर देश को हमारे विशाल बाजार की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि लोग ‘The Art of the Deal’ को नजरअंदाज कर रहे थे, लेकिन आज अमेरिका व्यापारिक कूटनीति में सबसे आगे है।
चीन का जवाबी हमला
इस टैरिफ की घोषणा के बाद चीन ने भी अमेरिका को जवाब देने में देर नहीं की। उसने पहले से लागू 34% टैरिफ को बढ़ाकर 84% कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने पलटवार करते हुए चीन पर 125% टैरिफ लागू कर दिया।
टकराव या नया संतुलन?
ट्रंप का यह कदम उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा माना जा रहा है। यह नीति अमेरिका को आत्मनिर्भर बनाने और विदेशी दबाव से मुक्त करने की दिशा में एक और बड़ा प्रयास है। अब देखना यह होगा कि यह व्यापारिक कदम दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाता है या किसी नए संतुलित समझौते की ओर ले जाता है।