भारतीय शेयर बाजार में हाल के दिनों में लगातार गिरावट ने निवेशकों के बीच हाहाकार मचा दिया है। इस गिरावट का प्रमुख कारण विदेशी निवेशकों द्वारा भारी मात्रा में पैसे निकालना बताया जा रहा है। रोज़ाना आने वाली खबरों और डेटा के अनुसार, एफपीआई (FPI) द्वारा भारतीय बाजार से करोड़ों रुपये निकाले जा रहे हैं। कई बार इन्हें एफआईआई (FII) भी कहा जाता है। यहां हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि FPI और FII में अंतर क्या है और ये कैसे भारतीय शेयर बाजार का अहम हिस्सा हैं।
FDI और FPI: अंतर और परिभाषा
विदेशी निवेश को समझने के लिए सबसे पहले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को समझना जरूरी है। FDI का मतलब है किसी विदेशी कंपनी या संस्था द्वारा किसी देश में 10% से अधिक हिस्सेदारी खरीदना या वहां कारोबार शुरू करना। यह निवेश आमतौर पर उत्पादन या सेवाओं के विस्तार के लिए किया जाता है। FDI से उस देश की आर्थिक तरक्की में योगदान होता है। भारत में भी बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश होता रहा है और यह निरंतर बढ़ रहा है।
जब कोई विदेशी निवेशक किसी भारतीय कंपनी में 10% से कम हिस्सेदारी खरीदता है, तो इसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) कहा जाता है। FPI को हिन्दी में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कहा जाता है। इसे ही कई बार FII यानी विदेशी संस्थागत निवेशक कहा जाता है। 2014 से पहले भारतीय बाजार में विदेशी निवेश दो रूपों में किया जाता था – FII और QFI (क्वालिफाइड फॉरेन इन्वेस्टमेंट)। लेकिन 2014 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने FII और QFI को मिलाकर FPI बना दिया। अब तकनीकी रूप से FII का इस्तेमाल केवल बोलचाल की भाषा में होता है।
FPI और FII की विशेषताएं
FPI और FII में मूलभूत अंतर यह है कि FPI का निवेश मुख्य रूप से शेयरों, बॉन्ड्स और म्यूचुअल फंड्स जैसे फाइनेंशियल एसेट्स में होता है, जबकि FDI में निवेशक किसी कंपनी के प्रबंधन और निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाता है।
FPI निवेशक के पास कंपनी की संपत्ति का प्रत्यक्ष स्वामित्व नहीं होता। वे शेयर बाजार में छोटी अवधि के लिए निवेश करते हैं और उच्च रिटर्न के उद्देश्य से निवेश को तेजी से निकालते हैं। यह निवेश ब्याज दरों और राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर प्रभावित होता है।
FPI निवेश के क्षेत्र
FPI के जरिए निवेशक निम्नलिखित क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं:
- स्टॉक: विदेशी निवेशक शेयर खरीदकर लाभांश और कैपिटल गेन का फायदा उठाते हैं।
- इक्विटी म्यूचुअल फंड: सीधे स्टॉक में निवेश करने की बजाय, विदेशी निवेशक इक्विटी-आधारित म्यूचुअल फंड्स में निवेश कर सकते हैं।
- एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF): ये फंड विशेष इंडेक्स या सेक्टर को ट्रैक करते हैं और स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड किए जा सकते हैं।
- डेट सिक्योरिटीज: इसमें सरकारी बॉन्ड्स, कॉर्पोरेट बॉन्ड्स, और फिक्स्ड-इनकम म्यूचुअल फंड शामिल हैं।
- अन्य क्षेत्रों में निवेश: रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REITS), डेरिवेटिव्स, कमोडिटी-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट, हेज फंड्स और प्राइवेट इक्विटी।
FPI की सीमाएं और नियंत्रण
FPI के निवेश से कंपनियों के शेयरों की मांग बढ़ती है और बाजार में लिक्विडिटी बढ़ती है। लेकिन FPI निवेश अल्पकालिक होता है और अस्थिरता का कारण बन सकता है। हाल में, भारतीय शेयर बाजार में FPI द्वारा भारी निकासी से गिरावट देखी जा रही है। FPI निवेशक बाजार से तेजी से फंड निकाल सकते हैं, जिससे अस्थिरता और जोखिम बढ़ जाता है।
भारत में FPI को सेबी (SEBI) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। किसी भी विदेशी निवेशक को भारतीय बाजार में निवेश से पहले SEBI में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है। FPI निवेशकों के नियम और शर्तों को ध्यान में रखते हुए SEBI उनका नियमन करता है।
FPI की भूमिका और महत्व
उदारीकरण के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था की तेजी के पीछे विदेशी निवेश का बड़ा हाथ रहा है। विदेशी निवेशक आम तौर पर बड़ी संस्थाएं होती हैं जैसे कि बैंक, म्यूचुअल फंड हाउस, और बीमा कंपनियां। ये भारतीय शेयर बाजार में भारी मात्रा में निवेश करती हैं। FPI निवेशक शॉर्ट टर्म में निवेश कर मुनाफा कमाने के उद्देश्य से निवेश करते हैं, जबकि FDI निवेशक दीर्घकालिक उद्देश्यों से निवेश करते हैं।
हाल की गिरावट के पीछे FPI की अधिक निकासी एक बड़ा कारण है, जिसने बाजार में अस्थिरता पैदा कर दी है। लेकिन, FPI निवेशकों की भूमिका को भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे बाजार की लिक्विडिटी और विकास को बढ़ावा मिलता है।