
भारत समेत दुनियाभर में बैसाखी और खालसा पंथ की स्थापना का दिन बड़े श्रद्धा और जोश के साथ मनाया जा रहा है। खासतौर पर पंजाब में गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली। अमृतसर स्थित सच्चखंड श्री हरिमंदर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में देश-विदेश से आई संगत ने माथा टेका और पवित्र सरोवर में स्नान कर गुरबाणी कीर्तन का आनंद लिया।
श्रद्धालुओं ने सुबह अमृत वेले से ही गुरुद्वारों में पहुंचकर अरदास की और गुरु साहिब का धन्यवाद किया। लोगों ने कहा कि खालसा साजना दिवस न सिर्फ सिख धर्म के लिए बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक प्रेरणा का दिन है। इस दिन दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी और मानवता को आत्मसम्मान, बहादुरी और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी थी।
एसजीपीसी ने दी बधाई, बच्चों को इतिहास से जोड़ने की अपील
इस मौके पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के सदस्य भाई मनजीत सिंह ने संगत को खालसा साजना दिवस की बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह दिन हमें गुरु की बाणी और बाने के साथ जुड़ने का संदेश देता है। उन्होंने संगत से अपील की कि हम इस ऐतिहासिक अवसर को सिर्फ त्योहार की तरह न मनाएं, बल्कि इसे आत्मिक और नैतिक बल को मजबूत करने का माध्यम बनाएं।
उन्होंने आगे कहा कि यह सिख इतिहास का वह स्वर्णिम अध्याय है, जिसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। अगर हम अपने बच्चों को इस दिन का ऐतिहासिक महत्व समझाएं, तो वे अपने धर्म और मूल्यों के साथ मजबूती से जुड़ पाएंगे।
जलियांवाला बाग के शहीदों को भी दी गई श्रद्धांजलि
मनजीत सिंह ने यह भी याद दिलाया कि 13 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास का एक और दुखद लेकिन प्रेरणादायक दिन है। इसी दिन साल 1919 में अंग्रेजों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में सैकड़ों निर्दोष लोगों को गोलियों से भून दिया था। आज के दिन देशभर में उन शहीदों को भी श्रद्धांजलि दी जा रही है, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।
विदेशों में भी खालसा दिवस की धूम
खालसा साजना दिवस की गूंज सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे सिख समुदाय के बीच भी देखने को मिल रही है। अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में गुरुद्वारों में विशेष दीवान सजाए गए, नगर कीर्तन निकाले गए और लंगर सेवा की गई।
खालसा साजना दिवस सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह आत्मबल, सेवा और सत्य के रास्ते पर चलने की प्रेरणा है। इस दिन का महत्व आने वाली पीढ़ियों को समझाना बेहद जरूरी है ताकि हमारी संस्कृति और परंपराएं मजबूत बनी रहें।