बिहार की राजनीति में पिछले कुछ समय से चल रही सियासी अटकलों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्टता देते हुए विराम लगा दिया है। उन्होंने पटना में आयोजित एक समीक्षा बैठक में साफ कर दिया कि वह एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के साथ ही रहेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा, “बिहार के लोगों ने हमें 24 नवंबर 2005 से काम करने का मौका दिया। तब से हम राज्य के विकास के लिए लगातार काम कर रहे हैं। 2005 से पहले बिहार की स्थिति बहुत खराब थी। जब लोगों ने हमें काम करने का मौका दिया, तो हमने स्थिति बदल दी। दो बार गलती से इधर-उधर का रास्ता चुना, लेकिन अब हमेशा एनडीए के साथ रहेंगे और राज्य के साथ-साथ देश के विकास के लिए काम करेंगे।”
नीतीश कुमार की खामोशी से मचा सियासी हड़कंप
हाल ही में नीतीश कुमार की खामोशी और उनकी बीजेपी से नाराजगी की खबरों ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी थी। इस बीच, राजद (राष्ट्रीय जनता दल) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार को फिर से साथ आने का खुला ऑफर दे दिया था। लालू यादव की सक्रियता और नीतीश कुमार के चुप्पी साधे रहने से अटकलें तेज हो गई थीं कि क्या मुख्यमंत्री फिर से महागठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं।
इस बीच, कई राजनीतिक विश्लेषकों और पत्रकारों ने यहां तक कह दिया था कि बिहार में एनडीए सरकार की “एक्सपायरी डेट” नजदीक है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप ने इस पूरे मामले को सुलझा दिया।
पीएम मोदी का रणनीतिक दांव
बिहार की सियासी परिस्थिति को संभालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रुचि दिखाई। इस दौरान एक बड़ा कदम उठाते हुए, बिहार के राज्यपाल को अचानक बदल दिया गया। राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर की जगह आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इस नियुक्ति के जरिए 26 वर्षों के अंतराल के बाद बिहार को एक मुस्लिम राज्यपाल मिला। इससे पहले, 14 अगस्त 1993 से 26 अप्रैल 1998 तक एआर किदवई बिहार के राज्यपाल रहे थे।
राजनीतिक मायने और मुस्लिम वोट बैंक पर नजर
राज्य में मुस्लिम राज्यपाल की नियुक्ति को आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम खासकर राजद के ‘माय’ (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक में सेंधमारी के उद्देश्य से उठाया गया है। हालांकि, मुसलमानों का समर्थन बीजेपी को सीधे न मिलने की संभावना है, लेकिन इस कदम से नीतीश कुमार को जरूर फायदा हो सकता है।
वहीं, इससे पहले कांग्रेस ने मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन राजद ने इसे खारिज कर दिया था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले का राजद पर क्या असर पड़ेगा।
नीतीश कुमार का संदेश और एनडीए के साथ प्रतिबद्धता
नीतीश कुमार ने बैठक के दौरान दो बार गलती से “इधर-उधर” जाने का जिक्र करते हुए कहा कि अब वह एनडीए के साथ रहेंगे। उनका यह बयान न केवल एनडीए के लिए राहत की खबर है, बल्कि विपक्षी खेमे के लिए भी बड़ा झटका है। नीतीश ने कहा, “हमने बिहार की जनता के लिए काम किया और आगे भी करते रहेंगे। राज्य और देश के विकास में एनडीए का साथ हमेशा रहेगा।”
राजद के लिए मुश्किलें बढ़ीं
नीतीश कुमार के इस बयान के बाद लालू यादव और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले राजद को बड़ा झटका लगा है। लालू यादव ने नीतीश कुमार को फिर से महागठबंधन में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इस पर नीतीश कुमार ने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी।
राजद के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्यपाल की नियुक्ति से मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लग सकती है। वहीं, एनडीए की यह रणनीति कांग्रेस के मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाने के दांव से भी ज्यादा असरदार साबित हो सकती है।
राजनीति में बदलते समीकरण
बिहार की राजनीति में अक्सर गठबंधन के बदलते समीकरण देखे जाते हैं। नीतीश कुमार पहले भी एनडीए छोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बने थे, लेकिन बाद में फिर से एनडीए में लौट आए। इस बार, उनके एनडीए में बने रहने के बयान ने सियासी अटकलों को खत्म कर दिया है।
नीतीश कुमार का एनडीए में बने रहने का फैसला न केवल बिहार की राजनीति को स्थिरता देगा, बल्कि एनडीए के लिए एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की रणनीति ने नीतीश को साथ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है। वहीं, विपक्ष के लिए यह बड़ा झटका साबित हो सकता है, खासकर राजद के लिए। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी और जेडीयू का यह गठजोड़ बिहार में क्या नई राजनीतिक तस्वीर पेश करेगा।