
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने स्कूल शिक्षा में एक बड़ा बदलाव करते हुए मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को अब प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने का फैसला लिया है। इसके तहत अब 3 से 11 साल तक के बच्चों को उनकी अपनी मां-बोली में पढ़ाया जाएगा। यह कदम नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा 2023 के तहत उठाया गया है, जिसमें प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में पढ़ाई को सबसे असरदार तरीका माना गया है।
क्यों लिया गया ये फैसला?
CBSE द्वारा जारी एक सर्कुलर के अनुसार, यह देखा गया है कि छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में सबसे तेज और गहराई से चीज़ों को समझते हैं। अगर किसी बच्चे को उसकी अपनी भाषा में पढ़ाया जाए, तो उसकी सीखने की क्षमता, आत्मविश्वास और समझ कई गुना बढ़ जाती है। यही वजह है कि अब पहली से पांचवीं तक के छात्रों को उन्हीं की भाषा में पढ़ाने की तैयारी की जा रही है।
स्कूलों को तैयारी के निर्देश
CBSE ने अपने सर्कुलर में सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि वे जल्द से जल्द इस बदलाव के लिए शिक्षण प्रणाली को तैयार करें। इसका मतलब है कि अब स्कूलों को अपने शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा, स्थानीय भाषाओं में किताबें उपलब्ध करवानी होंगी और कक्षा में बच्चों से संवाद भी उनकी मातृभाषा में किया जाएगा।
कब से लागू होगी नई व्यवस्था?
CBSE की योजना के अनुसार, यह नई नीति जुलाई 2025 से लागू हो सकती है। हालांकि पायलट स्तर पर कुछ स्कूलों में इसकी तैयारी पहले से शुरू हो चुकी है। यह एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है, जो भारत जैसे विविध भाषी देश के लिए बेहद जरूरी भी है।
क्या होंगे फायदे?
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बच्चे अपनी मां-बोली में जल्दी और बेहतर सीखते हैं।
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यह तरीका बच्चों को न केवल शिक्षा में मज़बूत बनाता है, बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और जड़ों से भी जोड़े रखता है।
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बच्चे मातृभाषा में अधिक स्वस्थ, खुश और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं।
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इससे ड्रॉपआउट दर को भी कम करने में मदद मिलेगी, क्योंकि बच्चे अपनी भाषा में शिक्षा को ज्यादा आत्मसात कर पाएंगे।
एक बड़ा बदलाव
यह निर्णय उन परिवारों के लिए बहुत राहत लेकर आया है, जो अब तक सोचते थे कि बच्चों को अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं में शिक्षा देकर ही उन्हें सफल बनाया जा सकता है। अब उन्हें यह समझने का मौका मिलेगा कि मातृभाषा में दी गई शिक्षा भी उतनी ही प्रभावी हो सकती है, बल्कि शुरुआती वर्षों में यह अधिक बेहतर साबित होती है।
CBSE का यह फैसला न केवल बच्चों के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह भारत के भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को भी सम्मान देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब ज़रूरत है कि स्कूल, अभिभावक और शिक्षक मिलकर इस बदलाव को सफल बनाने में योगदान दें, ताकि बच्चों को उनकी मूल भाषा में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।