आज छठ महापर्व का तीसरा दिन है। नहाए-खाए और खरना के बाद अब भक्त शाम के समय डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। यह दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और इसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु सूर्य देव और छठी मैया की विधिवत पूजा कर उनके आशीर्वाद से संतान की रक्षा, परिवार की सुख-समृद्धि और मुसीबतों से छुटकारा पाने की प्रार्थना करते हैं।
कैसे होती है छठ पर्व के तीसरे दिन की पूजा?
छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं और उनके परिवारजन सुबह से ही तैयारी में जुट जाते हैं। इस दिन प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू, फलों और फूलों को सजाया जाता है। पूजा के लिए बांस की बनी टोकरी में सभी सामग्री सजाई जाती है। एक सूप में नारियल और पांच प्रकार के फलों को रखकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
सूर्यास्त के समय से थोड़ी देर पहले सभी लोग परिवार सहित नदी या तालाब के किनारे छठ घाट जाते हैं। वहां व्रती महिलाएं सूर्य की ओर मुख करके जल और दूध अर्पित करती हैं। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की इस रस्म के दौरान महिलाएं परिक्रमा करती हैं और सूर्य देव की उपासना करती हैं। अर्घ्य देकर सभी परिवारजन वापस घर लौटते हैं और रातभर छठ माता के भजन और गीत गाए जाते हैं।
सूर्य अर्घ्य देने का समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, 7 नवंबर को सूर्योदय प्रातः 06:42 बजे और सूर्यास्त शाम 05:48 बजे होगा। इस समय लोग नदी, तालाब, या घाट पर खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देंगे। इस पूजन का विशेष महत्व है और इसे श्रद्धा से करने पर भगवान सूर्य के आशीर्वाद से कई समस्याओं का निवारण होता है।
क्यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य?
पौराणिक मान्यता है कि सूर्य देव शाम के समय अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में संध्या के समय सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर प्रत्यूषा देवी की भी उपासना की जाती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से कई तरह की बाधाओं का समाधान होता है और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी दूर होती हैं। इस पूजा के माध्यम से संतान की रक्षा, सुख और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
छठ पूजा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा राजा प्रियव्रत की है। कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को विशेष खीर दी, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। पुत्र वियोग में राजा प्रियव्रत दुखी होकर प्राण त्यागने को तत्पर हो गए। तभी ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि वह उनकी पूजा करें। राजा ने षष्ठी देवी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इस घटना के बाद से कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।
छठ पर्व का महत्व
छठ पूजा सूर्य उपासना का पर्व है और इसमें विशेष रूप से संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए कामना की जाती है। इस पर्व पर व्रती महिलाएं कठिन तपस्या करती हैं और सूर्य देव से अपने परिवार के लिए आरोग्य, सुख, और समृद्धि का आशीर्वाद मांगती हैं।