पंजाब कांग्रेस नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू के कैंसर को लेकर किए गए दावों पर विवाद गहरा गया है। छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने उनके दावों को चुनौती देते हुए 850 करोड़ रुपये का नोटिस भेजा है। सिविल सोसायटी के संयोजक डॉ. कुलदीप सोलंकी ने नवजोत कौर को सात दिनों के भीतर अपने दावों के समर्थन में सबूत पेश करने को कहा है।
क्या है मामला?
नवजोत कौर सिद्धू ने दावा किया था कि नींबू पानी, हल्दी और नीम जैसे प्राकृतिक चीजों के सेवन से कैंसर ठीक किया जा सकता है। इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि क्या नवजोत सिंह सिद्धू ने सिर्फ खान-पान में बदलाव कर कैंसर से छुटकारा पाया है? उन्होंने यह भी पूछा कि क्या नवजोत कौर इस दावे का समर्थन करती हैं और क्या उन्होंने खुद इलाज के लिए एलोपैथी दवाओं का उपयोग नहीं किया?
सात दिनों में सबूत पेश करने की मांग
डॉ. सोलंकी ने नवजोत कौर सिद्धू को लिखे पत्र में कहा है कि यदि उनके पास अपने दावों के समर्थन में कोई प्रमाणित दस्तावेज या मेडिकल रिपोर्ट है, तो उन्हें इसे सात दिनों के भीतर प्रस्तुत करना होगा। यदि वे ऐसा करने में असफल रहती हैं, तो उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
मरीजों में भ्रम की स्थिति
डॉ. सोलंकी ने कहा कि सिद्धू दंपति के दावों ने कैंसर मरीजों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। कई मरीज अब अपने एलोपैथिक इलाज को छोड़कर इन दावों पर भरोसा कर रहे हैं, जिससे उनकी जान खतरे में पड़ सकती है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह दावा झूठा पाया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
नोटिस में पूछे गए सवाल
- क्या नवजोत सिंह सिद्धू ने सिर्फ प्राकृतिक चीजों का सेवन कर स्टेज 4 कैंसर को हराया है?
- क्या एलोपैथी दवाओं का उपयोग न करने का दावा पूरी तरह सत्य है?
- क्या सिद्धू दंपति यह साबित कर सकते हैं कि उनके कैंसर का इलाज बिना किसी मेडिकल सहायता के हुआ?
आरोपों का असर
छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि सिद्धू और उनकी पत्नी के दावों के कारण कैंसर मरीजों में एलोपैथी चिकित्सा के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है। इससे मरीज अपनी दवाइयों और इलाज को छोड़ सकते हैं, जिससे उनकी जान को खतरा हो सकता है।
अदालत में जाने की चेतावनी
डॉ. सोलंकी ने कहा कि यदि सात दिनों के भीतर सबूत नहीं मिले या स्थिति स्पष्ट नहीं की गई, तो वह अपने वकीलों के माध्यम से अदालत में मामला दर्ज करेंगे।
यह मामला स्वास्थ्य से जुड़े गंभीर विषयों और बिना प्रमाण के दावों के प्रभाव को उजागर करता है। जनता के लिए सही जानकारी और सटीक प्रमाण का होना बेहद जरूरी है। बिना साक्ष्य के किए गए दावे लोगों की जान को जोखिम में डाल सकते हैं और चिकित्सा व्यवस्था पर अविश्वास बढ़ा सकते हैं।