दक्षिण कोरिया में मंगलवार को अचानक राष्ट्रपति यून सुक योल द्वारा मार्शल लॉ की घोषणा से राजनीतिक हलचल तेज हो गई। इस अप्रत्याशित कदम ने पूरे देश को चौंका दिया। हालांकि, विपक्ष और जनता के भारी विरोध के बीच मार्शल लॉ को रद्द कर दिया गया। इसके बावजूद, विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया है।
विपक्ष ने किया महाभियोग का प्रस्ताव
मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी, रीबिल्डिंग कोरिया पार्टी और रिफॉर्म पार्टी सहित पांच अन्य छोटी पार्टियों ने नेशनल असेंबली में राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव दायर किया। इस प्रस्ताव पर 190 विपक्षी सांसदों और एक स्वतंत्र सांसद ने हस्ताक्षर किए हैं।
सत्तारूढ़ दल, पीपुल्स पावर पार्टी, ने प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया है। विपक्षी दलों की योजना प्रस्ताव पर गुरुवार को नेशनल असेंबली के पूर्ण सत्र में रिपोर्ट करने और शुक्रवार या शनिवार को मतदान कराने की है। कानून के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव को रिपोर्ट किए जाने के 24 से 72 घंटों के भीतर मतदान के लिए रखा जाना चाहिए।
दो-तिहाई बहुमत की जरूरत
महाभियोग प्रस्ताव को पास करने के लिए 300 सदस्यीय नेशनल असेंबली में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है। विपक्षी दलों को इसे पास करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी के कम से कम आठ सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।
मार्शल लॉ पर विवाद
मुख्य विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद किम योंग मिन ने कहा कि मार्शल लॉ का ऐलान लोकतंत्र के खिलाफ था। उन्होंने कहा, “हम इस अवैध मार्शल लॉ को नजरअंदाज नहीं कर सकते। यह लोकतंत्र को खत्म करने का प्रयास है।” इस घटना के बाद रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने लोगों से माफी मांगी और इस्तीफे की पेशकश की है।
अगर राष्ट्रपति हटते हैं तो?
यदि महाभियोग प्रस्ताव पास हो जाता है और राष्ट्रपति यून सुक योल को पद से हटाया जाता है या वह इस्तीफा देते हैं, तो 60 दिनों के भीतर नए चुनाव होंगे। इस दौरान, प्रधानमंत्री हान डक सूं कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर देश का कार्यभार संभालेंगे।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्शल लॉ को रद्द करने के राष्ट्रपति योल के फैसले का स्वागत किया है। वहीं, उत्तर कोरिया की ओर से इस मुद्दे पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
दक्षिण कोरिया की लोकतांत्रिक संरचना पर सवाल
यह घटनाक्रम दक्षिण कोरिया की राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करता है। विपक्षी दलों का कहना है कि राष्ट्रपति योल के इस कदम ने देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को खतरे में डाल दिया है। वहीं, महाभियोग के परिणाम और नई सरकार के गठन को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।