चंडीगढ़ के पीजीआई (पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) में पहली बार एक विदेशी दाता के अंग दान किए गए हैं। 2 साल के छोटे बच्चे प्रॉस्पर, जो कीनिया के रहने वाले थे, का ब्रेन डेड घोषित होने के बाद उनके अंगों को दान कर दिया गया। इस घटना ने प्रॉस्पर को न केवल पीजीआई का बल्कि भारत का सबसे कम उम्र का डोनर बना दिया, जिसने इतनी छोटी उम्र में अपने पैनक्रियाज़, गुर्दे और कॉर्निया दान किए। इनके दान किए गए अंगों ने चार जरूरतमंद मरीजों को नया जीवन प्रदान किया है। इनमें एक मरीज को गुर्दा और पैनक्रियाज़ का ट्रांसप्लांट किया गया, एक को गुर्दा और दो मरीजों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया गया।
एक साहसी निर्णय, अनेकों को नई जिंदगी
पीजीआई के निदेशक डॉ. विवेक लाल ने इस साहसी निर्णय के लिए परिवार का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा, “एक छोटे बच्चे का इस तरह दुनिया से जाना बहुत ही दुखद है, लेकिन प्रॉस्पर के परिवार ने एक दिलेरी भरा निर्णय लिया है, जो कई जरूरतमंदों के लिए अनमोल उपहार साबित होगा।” परिवार का यह साहसिक फैसला न केवल पीजीआई में अंग दान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि इससे समाज में अंग दान के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
जीवन और मृत्यु की दस दिन की लड़ाई
कीनिया के रहने वाले प्रॉस्पर का परिवार इस समय खड़क में रह रहा था। 17 अक्टूबर को घर में खेलते वक्त प्रॉस्पर गिर गए, जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं और तत्काल उन्हें पीजीआई में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने उनका इलाज शुरू किया, लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। लगभग दस दिन तक जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ने के बाद 26 अक्टूबर को डॉक्टरों ने प्रॉस्पर को ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इसके बाद उनके परिवार ने उनके अंगों को दान करने का साहसिक निर्णय लिया।
प्रॉस्पर की मां जैकलिन डायरी ने अपने बेटे के निधन पर गहरा शोक जताया लेकिन इस बात से संतोष भी व्यक्त किया कि उनके बेटे के अंग अन्य जरूरतमंदों को नई जिंदगी देंगे। उन्होंने कहा, “हमारे लिए यह दुख जीवनभर रहेगा कि हमने अपने बच्चे को खो दिया, लेकिन इस बात से दिल को राहत मिलती है कि उनके अंग किसी और की जिंदगी को खुशियों से भर देंगे।” उन्होंने आगे कहा, “हमारे बच्चे का इस तरह से दूसरों के लिए जीवनदान देना हमारे परिवार के लिए शांति का कारण है। हम उम्मीद करते हैं कि यह काम पीड़ितों के लिए आशा और हमारे परिवार के लिए संबल का प्रतीक बनेगा।”
अंगों का ट्रांसप्लांट: एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया
पीजीआई के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और रोटो (रीजनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गेनाइजेशन) के नोडल अफसर प्रो. विपिन कौशल ने बताया कि परिवार की सहमति और नियमों के मुताबिक सभी जरूरी क्लियरेंस के बाद पीजीआई की मेडिकल टीम ने अंग ट्रांसप्लांट का कार्य किया। रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी विभाग के प्रमुख प्रो. आशीष शर्मा ने कहा कि इतने छोटे दाता से अंग प्राप्त कर उसे ट्रांसप्लांट करना बेहद मुश्किल होता है। प्रो. शर्मा ने बताया, “छोटे बच्चे के अंगों का आकार बहुत छोटा होने के कारण दो गुर्दों को अलग करना अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। ऐसी स्थिति में सर्जरी का काम बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन हमारी टीम ने कड़ी मेहनत और सावधानी से काम किया और ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक पूरा किया।”
अंग दान की अहमियत और समाज में जागरूकता
पीजीआई के इस प्रयास ने अंग दान के महत्व को रेखांकित किया है। प्रॉस्पर के परिवार द्वारा लिया गया यह फैसला न केवल उनके बच्चे को अमर बना गया है, बल्कि अंग दान के प्रति समाज में एक प्रेरणा के रूप में काम करेगा। इस घटना से अन्य परिवारों को भी प्रेरणा मिलेगी और अंग दान के प्रति लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आएगा।
प्रॉस्पर का जीवन तो अल्प समय में ही समाप्त हो गया, लेकिन उनके अंग दान ने उन्हें अमर बना दिया है। यह घटना भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश करती है और समाज में अंग दान के महत्व को उजागर करती है। ऐसे साहसिक निर्णय से न केवल पीड़ितों को नया जीवन मिला बल्कि अंग दान के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।