
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने हाल ही में अकाल तख्त, केसगढ़ साहिब और दमदमा साहिब के जत्थेदारों को उनके पद से हटा दिया। इस फैसले से सिख संगत में गहरा रोष है। कई सिख संगठन और अकाली दल के नेता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। इसी बीच श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार और श्री हरमंदिर साहिब के हेड ग्रंथि ज्ञानी रघबीर सिंह ने इस फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
“संस्थाओं के सम्मान से खिलवाड़ हो रहा है” – ज्ञानी रघबीर सिंह
ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह सिख संस्थाओं के हित में नहीं है। उन्होंने सिख संगत को सतर्क रहने की अपील की और कहा कि धार्मिक संस्थाओं, उनके पदों और परंपराओं का सम्मान बनाए रखना बहुत जरूरी है। उन्होंने SGPC के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि यह सिख समुदाय के विश्वास को ठेस पहुंचाने वाला कदम है।
ज्ञानी रघबीर सिंह को दो दिन पहले अकाल तख्त के जत्थेदार के पद से हटा दिया गया था। यह फैसला SGPC की अंतरिम कमेटी द्वारा लिया गया था। इस फैसले के खिलाफ सिख संगत और कई जत्थेबंदियां विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।
सिख समुदाय में SGPC के फैसले के खिलाफ बढ़ता गुस्सा
SGPC द्वारा तीन जत्थेदारों को हटाने के फैसले का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। कई सिख जत्थेबंदियों और गुरुद्वारा समितियों ने SGPC के इस कदम की आलोचना की है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के नेताओं ने भी इस फैसले को गलत बताया है।
शिरोमणि अकाली दल में भी इस मुद्दे को लेकर असहमति देखने को मिल रही है। कई वरिष्ठ अकाली नेताओं ने SGPC के फैसले का विरोध करते हुए अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है। अकाली दल के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी इस फैसले पर नाराजगी जताई है।
“अकाल तख्त की गरिमा को ठेस पहुंच रही है” – सिख नेता
ज्ञानी रघबीर सिंह ने कहा कि सिख समुदाय हमेशा से श्री हरमंदिर साहिब और श्री अकाल तख्त के आदेशों को सिर झुका कर स्वीकार करता आया है। लेकिन जब इन्हीं संस्थाओं की गरिमा को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो सिख संगत का गुस्सा स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि मौजूदा घटनाएं सिख परंपराओं के खिलाफ हैं और यह केवल सत्ता की राजनीति के कारण हो रहा है।
सिख संगत से संगठित होने की अपील
ज्ञानी हरप्रीत सिंह, जो पहले अकाल तख्त के जत्थेदार रह चुके हैं, ने भी SGPC के इस फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा कि सिखों को अपनी धार्मिक संस्थाओं की रक्षा के लिए एकजुट होना होगा। उन्होंने संगत से अपील की कि वे सिख मर्यादा और परंपराओं को बचाने के लिए आगे आएं।
उन्होंने कहा कि “7 मार्च सिख इतिहास में एक काला दिन माना जाएगा।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह फैसला बदले की भावना से लिया गया है।
“अकाली दल पंथ से भटक चुका है”
ज्ञानी रघबीर सिंह ने SGPC और अकाली दल के नेताओं पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के निजी स्वार्थों के कारण अकाली दल कमजोर हो गया है। बिना किसी का नाम लिए उन्होंने कहा कि सत्ता के लालच में जत्थेदारों की बलि दी जा रही है। उन्होंने कहा कि जत्थेदारों की नियुक्ति सिख मर्यादा के अनुसार होनी चाहिए, न कि किसी राजनीतिक दबाव में।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर 2 दिसंबर को अकाल तख्त द्वारा दिए गए आदेश को लागू किया जाता, तो आज अकाली दल की स्थिति अलग होती।
SGPC के फैसले पर बढ़ते सवाल
अब सवाल यह उठता है कि SGPC ने जत्थेदारों को हटाने का फैसला क्यों लिया और इसका भविष्य में क्या असर होगा? क्या यह विवाद अकाली दल की राजनीति को और कमजोर करेगा?
सिख संगत लगातार SGPC के खिलाफ आवाज उठा रही है और मांग कर रही है कि यह फैसला तुरंत वापस लिया जाए। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सिख समाज का विरोध और तेज हो सकता है।