हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार को हाईकोर्ट से एक और झटका लगा है। प्रदेश उच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) के 18 घाटे में चल रहे होटलों को तुरंत बंद करने के आदेश दिए हैं। यह फैसला न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने पर्यटन विकास निगम की वित्तीय स्थिति और सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी को रोकने के लिए लिया है।
किन होटलों को बंद करने का आदेश दिया गया है?
हाईकोर्ट ने जिन होटलों को बंद करने का आदेश दिया है, उनमें प्रमुख हैं:
1. द पैलेस होटल, चायल
2. होटल गीतांजलि, डलहौजी
3. होटल बाघल, दाड़लाघाट
4. होटल धौलाधार, धर्मशाला
5. होटल कुणाल, धर्मशाला
6. होटल एप्पल ब्लॉसम, फागू
7. होटल देवदार, खजियार
8. होटल लॉग हट्स और हडिम्बा कॉटेज, मनाली
9. होटल द कैसल, नग्गर
10. होटल शिवालिक, परवाणू
इनके अलावा अन्य घाटे में चल रहे होटलों की भी सूची शामिल है।
फैसले के पीछे कारण
हाईकोर्ट ने कहा कि ये होटल “सफेद हाथी” साबित हो रहे हैं, जो राज्य के खजाने पर बड़ा बोझ बन चुके हैं। कोर्ट ने पर्यटन निगम की विफलता पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये संपत्तियां लाभ कमाने के बजाय सरकार की वित्तीय स्थिति को और बिगाड़ रही हैं।
संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन नहीं
अदालत के समक्ष 56 होटलों के व्यवसाय से संबंधित आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे। इन आंकड़ों के विश्लेषण के बाद यह निर्णय लिया गया। कोर्ट ने कहा कि एचपीटीडीसी अपनी संपत्तियों का सही उपयोग करने में असमर्थ रहा है, जिससे ये होटल घाटे में चल रहे हैं।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों से जुड़ा मामला
हाईकोर्ट ने यह आदेश पर्यटन निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारियों को वित्तीय लाभ न देने से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने निगम को यह भी निर्देश दिया है कि वे ऐसे कर्मचारियों की सूची प्रस्तुत करें, जिन्हें अब तक उनके वित्तीय लाभ नहीं दिए गए हैं, और जिन कर्मचारियों की मृत्यु हो चुकी है, उनकी जानकारी भी दी जाए।
सरकार पर प्रभाव
हिमाचल प्रदेश सरकार के लिए यह आदेश बड़ा झटका है। सुक्खू सरकार पहले ही वित्तीय संकट का सामना कर रही है। घाटे में चल रहे होटलों को बंद करने के आदेश ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आगे की राह
अदालत ने पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक को इन आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया है और अनुपालन की रिपोर्ट शपथ पत्र के रूप में पेश करने का निर्देश दिया है।
यह फैसला न केवल सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र के संसाधनों का उपयोग सही ढंग से क्यों नहीं किया जा रहा।