संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, भारत ने 10 नवंबर 2024 तक 1,455,591,095 लोगों की जनसंख्या के साथ दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश का स्थान हासिल कर लिया है। 2023 के अंत में भारत की जनसंख्या 1.42 अरब थी, और अब इसमें निरंतर बढ़ोतरी जारी है। हालांकि, इसके विपरीत जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रजनन दर में आ रही गिरावट भविष्य में भारत की जनसंख्या वृद्धि को धीमा कर सकती है, जिससे सामाजिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं।
क्यों घट रही है प्रजनन दर?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि फर्टिलिटी रेट में कमी के पीछे कई कारण हैं, जिनमें जलवायु परिवर्तन और खानपान में बदलाव प्रमुख हैं। इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन और यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के एक अध्ययन के अनुसार, बदलती जलवायु और जीवनशैली के कारण प्रेगनेंसी में नई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं। इसके अतिरिक्त, खराब खानपान और बढ़ते प्रदूषण से भी महिलाओं की प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है।
1950 में जहां भारत की प्रजनन दर 6.2 थी, वह अब घटकर लगभग 2% तक आ गई है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर यह दर घटती रही तो 2050 तक यह 1.3 तक जा सकती है।
घटती प्रजनन दर के संभावित नुकसान
हालांकि घटती प्रजनन दर से जनसंख्या नियंत्रण में आसानी हो सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम चिंताजनक हो सकते हैं। फर्टिलिटी रेट में कमी का सबसे पहला असर देश की युवा जनसंख्या पर पड़ेगा। कम बच्चों के जन्म से भविष्य में कामकाजी आयु वर्ग में कमी आ सकती है, जिससे लेबर फोर्स में भी गिरावट होगी।
इस गिरावट का असर देश के आर्थिक विकास पर भी पड़ेगा, क्योंकि बुजुर्गों की संख्या बढ़ने से स्वास्थ्य सुविधाओं और सामाजिक सुरक्षा पर अधिक संसाधनों की जरूरत होगी। वहीं, श्रमिकों की कमी से उत्पादन क्षमता घट सकती है, जिससे देश के विकास में रुकावट आ सकती है।
बुजुर्ग जनसंख्या में वृद्धि
घटती प्रजनन दर का असर जनसंख्या के आयु-संरचना पर भी दिखाई देगा। जैसे-जैसे जन्म दर घटेगी, बुजुर्ग जनसंख्या का अनुपात बढ़ेगा। इसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सेवा, पेंशन, और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यकताओं में बढ़ोतरी होगी, जिनका भार सरकार और समाज पर पड़ेगा। इससे पारिवारिक संरचनाओं में भी बदलाव देखने को मिलेगा, क्योंकि परिवारों में बच्चों की संख्या घटने के कारण बुजुर्गों की देखभाल करने वाले लोगों की संख्या में कमी हो सकती है।
फर्टिलिटी दर घटने के फायदे भी
हालांकि घटती प्रजनन दर से कुछ सकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। जैसे कि कम जन्म दर से प्राकृतिक संसाधनों की खपत में संतुलन बनेगा। सीमित संसाधनों के साथ बेहतर प्रबंधन संभव हो सकेगा, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना आसान हो सकता है।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, प्रजनन दर में कमी से महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा भी बढ़ती है। जो महिलाएं कम बच्चे जन्म देती हैं, उनका स्वास्थ्य बेहतर होता है और वे अधिक उम्र तक जीवित रहती हैं। इससे महिलाओं की जीवन गुणवत्ता में भी सुधार होता है और वे परिवार एवं समाज में बेहतर योगदान दे सकती हैं।
भविष्य में चुनौतियां और समाधान
घटती प्रजनन दर के चलते भविष्य में रोजगार, आर्थिक विकास, और सामाजिक सुरक्षा के मोर्चों पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, सरकार इस स्थिति का लाभ उठाकर बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान कर सकती है, जिससे जनसंख्या का संतुलित विकास हो सके। साथ ही, युवा वर्ग को रोजगार और स्किल ट्रेनिंग उपलब्ध कराना भी महत्वपूर्ण होगा ताकि लेबर फोर्स की कमी से निपटा जा सके।
वहीं, परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ाने और प्रजनन दर के सतत नियंत्रण की आवश्यकता होगी ताकि भारत जनसंख्या के मामले में संतुलन बनाए रख सके।