
जापान ने अपनी रक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है। हाल ही में जापान ने अपनी नौसेना के परीक्षण जहाज JS Asuka पर दुनिया के सबसे आधुनिक हथियारों में से एक, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेलगन (Electromagnetic Railgun) का समुद्री परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह कदम न केवल जापान की सैन्य ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक संतुलन भी बदल सकता है।
क्या है रेलगन?
रेलगन एक ऐसा हथियार है जो पारंपरिक तोपों की तरह बारूद का इस्तेमाल नहीं करता। इसकी जगह यह विद्युतचुंबकीय बल (Electromagnetic Force) का प्रयोग कर प्रोजेक्टाइल (गोला) को बेहद तेज रफ्तार से दागता है। इसकी गति करीब 2,500 मीटर प्रति सेकंड है, जो आवाज की गति से लगभग 6.5 गुना तेज है। प्रोजेक्टाइल का वजन लगभग 320 ग्राम होता है, लेकिन इसकी रफ्तार और ताकत इतनी अधिक होती है कि यह हाइपरसोनिक मिसाइलों और तेज उड़ने वाले लड़ाकू विमानों को भी निशाना बना सकता है। रेलगन की लंबाई करीब 20 फीट और वजन लगभग 8 टन है।
चीन और उत्तर कोरिया क्यों घबराए हुए हैं?
जैसे ही जापान ने रेलगन का टेस्ट किया, चीन और उत्तर कोरिया की चिंता बढ़ गई। इसका कारण साफ है – रेलगन पारंपरिक रक्षा प्रणालियों से कहीं अधिक तेज, सटीक और प्रभावशाली है। विशेषज्ञों का कहना है कि जापान की यह तकनीक चीन की तेजी से विकसित हो रही हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमताओं के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है। चीनी सेना के एक पूर्व ट्रेनर ने जापान के इस कदम को “आक्रामक रणनीति की शुरुआत” बताया और चेतावनी दी कि इससे पूरे एशिया क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।
अमेरिका ने क्यों छोड़ा प्रोजेक्ट, जापान ने कैसे पाई बढ़त?
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने भी कभी रेलगन पर काम शुरू किया था, लेकिन 2021 में उसने इस प्रोजेक्ट को बीच में ही छोड़ दिया। वहीं, चीन भी अभी इस तकनीक में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है। जापान ने 2016 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था और अब उसकी सफलता ने उसे वैश्विक सैन्य तकनीक की दौड़ में एक मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है।
क्या हो सकता है आगे?
अब जब जापान ने समुद्र में रेलगन का परीक्षण कर लिया है, तो आने वाले समय में यह तकनीक उसके नौसैनिक जहाजों और तटीय रक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा बन सकती है। इससे न केवल जापान की रक्षा क्षमता मजबूत होगी, बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उसकी भूमिका भी कहीं अधिक प्रभावशाली हो जाएगी।
कुल मिलाकर, जापान का यह कदम दुनिया भर में सैन्य तकनीक के क्षेत्र में एक नया अध्याय खोल सकता है, और इसके असर जल्द ही देखने को मिल सकते हैं।