
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में बढ़े तनाव ने पूरी दुनिया की चिंताओं को बढ़ा दिया था। कई जानकारों का मानना है कि अगर हालात काबू में न आते, तो यह संघर्ष एक बड़े युद्ध का रूप ले सकता था, जिसमें लाखों लोगों की जान जा सकती थी। लेकिन अब एक राहत की खबर सामने आई है। अमेरिका ने दावा किया है कि इस तनाव को कम करने और दोनों देशों को बातचीत की मेज़ पर लाने में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अमेरिका ने निभाई मध्यस्थता की भूमिका
अमेरिका के विदेश विभाग की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और विदेश मंत्री मार्को रूबियो लगातार भारत और पाकिस्तान के नेताओं से सीधी बातचीत की अपील कर रहे थे। अमेरिका ने इस संघर्ष को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए पर्दे के पीछे बातचीत की कोशिशें कीं और अंततः दोनों देशों के बीच युद्धविराम की स्थिति बनी।
विदेश विभाग ने दोनों देशों के नेताओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने बहुत समझदारी से काम लिया है। अमेरिका ने भरोसा जताया कि आने वाले समय में दोनों देश बातचीत के ज़रिए स्थायी समाधान की ओर बढ़ेंगे और अमेरिका इसमें पूरी मदद करेगा।
ट्रंप का बड़ा बयान: लाखों की जान बची
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रूथ सोशल’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच जो टकराव बढ़ रहा था, उसमें लाखों लोग मारे जा सकते थे। उन्होंने दोनों देशों की लीडरशिप की सराहना करते हुए लिखा कि उन्हें भारत और पाकिस्तान के नेताओं पर गर्व है कि उन्होंने हालात को समझदारी से संभाला।
ट्रंप ने यह भी कहा कि अब वह दोनों देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के साथ मिलकर “लगभग हज़ार साल बाद” कश्मीर मसले का हल खोजने की कोशिश करेंगे।
ट्रंप जूनियर का दावा: मेरे पापा ने बचाई दुनिया
डोनाल्ड ट्रंप के बेटे ट्रंप जूनियर ने अपने पिता की तारीफ करते हुए कहा कि युद्ध टलने का सारा श्रेय ट्रंप को जाता है। उन्होंने एक वीडियो भी साझा किया जिसमें दावा किया गया कि भारत ने शांति कायम करने के लिए अमेरिका से संपर्क किया था। ट्रंप जूनियर ने कहा कि आज दुनिया अगर थोड़ी सुरक्षित है, तो वह अमेरिका के कारण है।
नूरखान एयरबेस पर हमला और परमाणु खतरा
पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूरखान एयरबेस पर भारत द्वारा किए गए एक हमले के बाद अमेरिका की चिंता और बढ़ गई थी। यह एयरबेस पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के भंडारण केंद्र से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां पाकिस्तान के सबसे ज्यादा परमाणु हथियार रखे जाते हैं। अमेरिका को डर था कि कहीं यह हथियार किसी खतरे में न आ जाएं।
अमेरिका तुरंत हरकत में आया
जैसे ही यह जानकारी सामने आई, अमेरिका की उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और सेना प्रमुख असीम मुनीर से तुरंत संपर्क किया। वेंस ने पहले परमाणु हथियारों की सुरक्षा की जानकारी मांगी और फिर दोनों देशों से तनाव कम करने और बातचीत शुरू करने की अपील की।
अमेरिका पहले चुप था, फिर बदल गई रणनीति
शुरुआत में अमेरिका ने इस पूरे मामले को अपना मुद्दा मानने से इनकार कर दिया था। लेकिन जब परमाणु खतरे की बात सामने आई, तो पेंटागन (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) में भी बैठकें शुरू हो गईं। इसके बाद अमेरिका ने पूरी सक्रियता से दोनों देशों को सीधी बातचीत के लिए तैयार किया।
इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। एक तरफ जहां युद्ध का खतरा मंडरा रहा था, वहीं अमेरिका ने कूटनीति के ज़रिए दोनों देशों को बातचीत के लिए मजबूर किया। इससे न सिर्फ लाखों लोगों की जान बची बल्कि दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद भी जगी है।