महाकुंभ 2025: मकर संक्रांति पर 1.38 करोड़ श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी
मंगलवार सुबह मकर संक्रांति के मौके पर महाकुंभ के दूसरे स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु-संतों का अमृत स्नान जारी रहा। सुबह 10 बजे तक 1 करोड़ 38 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा और संगम में डुबकी लगाई। यह जानकारी मेले के प्रशासन ने दी।
पहले स्नान की शुरुआत महंतों के साथ
अमृत स्नान में सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा के संतों ने “हर हर महादेव” के जयकारों के साथ संगम में स्नान किया। महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर चेतन गिरी ने कहा, “हर 12 साल में कुंभ होता है, लेकिन 144 साल बाद महाकुंभ आता है। यह अवसर केवल भाग्यशाली लोगों को मिलता है।”
हजारों संतों ने लिया हिस्सा
महानिर्वाणी अखाड़े के 68 महामंडलेश्वर और हजारों संतों ने इस स्नान में हिस्सा लिया। इनके बाद तपोनिधि पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा और आनंद अखाड़ा के संतों और ऋषियों ने भी संगम में डुबकी लगाई। इस दौरान हेलीकॉप्टर से श्रद्धालुओं पर गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा की गई।
अखाड़ों की शोभायात्रा
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी शोभायात्रा का नेतृत्व कर रहे थे। उनके बाद अखाड़ों के झंडे, देवताओं की पालकी, नागा साधुओं के समूह और संत महंत शामिल थे। निरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी एक भव्य रथ पर सवार थे।
स्नान का समय और प्रक्रिया
निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रविंद्र पुरी ने बताया, “हम 7:15 बजे स्नान घाट पर पहुंचे और 7:45 बजे स्नान खत्म कर घाट खाली कर दिया। निरंजनी और आनंद अखाड़ों के हजारों संतों ने आधे घंटे में स्नान किया। कुल 35 महामंडलेश्वर और हजारों नागा साधु स्नान में शामिल हुए।”
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की आध्यात्मिक विरासत और विश्वास का प्रतीक बताया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे भारत की विविधता में एकता का प्रतीक कहा।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
महाकुंभ के लिए सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए हैं। करीब 50,000 सुरक्षाकर्मी 12 किलोमीटर में फैले 41 घाटों पर तैनात हैं। मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं।
महाकुंभ: आस्था और एकता का प्रतीक
महाकुंभ न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का उत्सव भी है। लाखों श्रद्धालुओं ने अपनी आस्था के साथ गंगा और संगम में डुबकी लगाकर इस पावन अवसर को ऐतिहासिक बना दिया।