प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम तट पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन, महाकुंभ 2025, आज से आधिकारिक रूप से शुरू हो गया। पौष पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पहले शाही स्नान के साथ इसकी भव्य शुरुआत हुई। इस आयोजन में अगले 45 दिनों तक आध्यात्मिकता और संस्कृति के विविध रंग देखने को मिलेंगे।
12 साल बाद फिर से महाकुंभ का आयोजन
महाकुंभ हर 12 साल के अंतराल पर आयोजित होता है। हालांकि, इस बार का महाकुंभ खगोलीय घटनाओं और संयोजनों के कारण विशेष माना जा रहा है। संत समाज का कहना है कि यह संयोग 144 वर्षों के बाद बन रहा है, जिससे इस आयोजन का महत्व और भी बढ़ गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अनुमान लगाया है कि इस बार करीब 35 करोड़ श्रद्धालु महाकुंभ में शामिल होंगे।
पहले से ही भक्तों का सैलाब
महाकुंभ की शुरुआत से पहले ही श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा लग चुका है। सरकार और प्रशासन के अनुसार, औपचारिक शुरुआत से दो दिन पहले ही 25 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में पवित्र स्नान किया। भक्तों की यह संख्या आयोजन की भव्यता और इसके प्रति लोगों की आस्था को दर्शाती है।
‘डिजिटल महाकुंभ’ का अनोखा अनुभव
महाकुंभ 2025 को आधुनिक तकनीक और डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ जोड़ते हुए इसे ‘डिजिटल महाकुंभ’ का नाम दिया गया है। इस बार एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। इनमें भीड़ प्रबंधन, यातायात नियंत्रण, सुरक्षा और श्रद्धालुओं को सुविधाएं प्रदान करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रशासन और व्यवस्थाएं
महाकुंभ के सुचारू संचालन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की हैं। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, जिसमें सीसीटीवी, ड्रोन और एआई तकनीक का उपयोग शामिल है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर टेंट सिटी, मोबाइल शौचालय, मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं और फूड स्टॉल स्थापित किए गए हैं।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन
महाकुंभ केवल एक स्नान पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपराओं का प्रतीक है। यहां विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और अखाड़ों के संत-समाज, प्रवचन, यज्ञ और भजन-कीर्तन के माध्यम से अध्यात्म की ज्योति फैलाते हैं।
महाकुंभ 2025 न केवल आस्था और परंपरा का पर्व है, बल्कि यह आधुनिकता और आध्यात्मिकता का संगम भी है। संगम तट पर उमड़ा आस्था का यह सैलाब एक बार फिर भारत की सांस्कृतिक विरासत और परंपरा की गहराई को प्रदर्शित कर रहा है। आने वाले 45 दिनों तक प्रयागराज विश्वभर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों का केंद्र बना रहेगा।