बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों अपनी ‘प्रगति यात्रा’ पर हैं। इस दौरान उन्होंने पश्चिम चंपारण जिले से यात्रा की शुरुआत करते हुए 781 करोड़ रुपये की योजनाओं का ऐलान किया और गन्ना किसानों के लिए प्रति क्विंटल 20 रुपये खरीद मूल्य बढ़ाने की घोषणा की। वहीं, इसी बीच बिहार की राजनीति में बड़ी हलचल मच गई, जब यह खबर आई कि बीजेपी ने 2025 के विधानसभा चुनाव जेडीयू के नेतृत्व में लड़ने का फैसला कर लिया है। जेडीयू ने इस घोषणा के तुरंत बाद एक पोस्टर भी जारी किया, जिसमें लिखा गया है: ‘2025, फिर से नीतीश।’
अमित शाह के बयान से बढ़ा था असमंजस
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बिहार में 2025 के चुनाव में नेतृत्व का फैसला बीजेपी का संसदीय बोर्ड करेगा। इस बयान के बाद बिहार बीजेपी में असमंजस की स्थिति बन गई थी। चर्चा शुरू हो गई थी कि बीजेपी बिहार में महाराष्ट्र मॉडल लागू कर सकती है, जहां बड़े सहयोगी दल को किनारे कर दिया गया। इससे यह संभावना बढ़ गई थी कि चुनाव के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बन पाएंगे।
नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा और मिशन 2025
नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा को मिशन 2025 के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। इस यात्रा के दौरान उन्होंने न केवल विकास योजनाओं की घोषणा की, बल्कि बिहार के गन्ना किसानों के लिए भी राहत का ऐलान किया। यह साफ है कि वह अपनी प्रगति यात्रा के जरिए जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने और 2025 में सत्ता बरकरार रखने की तैयारी कर रहे हैं।
बीजेपी का समर्थन और जेडीयू का पोस्टर
हरियाणा के सूरजकुंड में आयोजित बिहार बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक के दूसरे दिन यह फैसला लिया गया कि 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इस फैसले के बाद जेडीयू ने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर जारी किया। इस पोस्टर में नीतीश कुमार की तस्वीर के साथ लिखा गया: ‘2025, फिर से नीतीश।’
पोस्टर के साथ जेडीयू ने नीतीश कुमार के नेतृत्व की खूबियां गिनाईं। इसमें कहा गया:
- नीतीश मतलब सबकी स्वीकार्यता।
- नीतीश मतलब बिहार का विकास।
- नीतीश मतलब नौकरी और रोजगार।
- नीतीश मतलब सामाजिक सुरक्षा की गारंटी।
- नीतीश मतलब सर्वोत्तम विकल्प।
नीतीश कुमार की प्रेशर पॉलिटिक्स का असर
नीतीश कुमार की प्रेशर पॉलिटिक्स हमेशा से असरदार रही है। जब वह महागठबंधन में थे, तब बीजेपी से रिश्तों की बात कहकर वह लालू यादव और तेजस्वी यादव पर दबाव बनाते थे। लालू यादव चाहते थे कि नीतीश मुख्यमंत्री पद छोड़कर तेजस्वी को मौका दें। लेकिन नीतीश ने दबाव के बावजूद मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ा।
इसी तरह, अमित शाह के बयान के बाद जब विपक्षी नेताओं ने बीजेपी पर हमला बोला, तो अरविंद केजरीवाल ने नीतीश और चंद्रबाबू नायडू को पत्र लिखकर बीजेपी का साथ छोड़ने की सलाह दी। हालांकि, नीतीश ने चुप्पी साधे रखी और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
बीजेपी के लिए नीतीश को इग्नोर करना मुश्किल
नीतीश कुमार ने बीजेपी को उसकी कमजोरी का अहसास करा दिया है। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की स्वीकार्यता और अनुभव को बीजेपी नकार नहीं सकती। हालांकि, यह भी ध्यान देने वाली बात है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व को मंजूरी बिहार बीजेपी से मिली है, न कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड से।
आगे की राह
नीतीश कुमार ने ‘प्रगति यात्रा’ और राजनीतिक रणनीतियों के जरिए खुद को एक बार फिर प्रभावी नेता के रूप में स्थापित किया है। 2025 के चुनाव में उनका नेतृत्व अब लगभग तय है। लेकिन यह देखना बाकी है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच संबंध भविष्य में कैसे बनते हैं और यह गठबंधन बिहार की जनता को कितना प्रभावित करता है।