कमाने वाली पत्नी को गुजारा भत्ता नहीं – सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस महिला की याचिका खारिज कर दी, जिसने अपने पति से गुजारा भत्ता (Maintenance) की मांग की थी। अदालत ने कहा कि जब पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है और पति के समान पद पर कार्यरत है, तो उसे गुजारा भत्ता दिए जाने का कोई आधार नहीं बनता।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मामला एक सहायक प्रोफेसर (Assistant Professor) के पद पर कार्यरत महिला से जुड़ा है, जो अपने पति से गुजारा भत्ता मांग रही थी। महिला का कहना था कि उसके पति की कमाई उससे अधिक है, इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।
मामला जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और निचली अदालत में गया, तो वहां भी महिला की याचिका खारिज कर दी गई थी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वहां भी उसे राहत नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क – आत्मनिर्भर महिला को गुजारा भत्ता क्यों?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस. ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए साफ कहा कि अगर पत्नी आत्मनिर्भर है और पति के समान पद पर कार्यरत है, तो उसे गुजारा भत्ता देने का कोई आधार नहीं है।
कोर्ट ने अपने संक्षिप्त आदेश में कहा:
“पति और पत्नी दोनों सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए, विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) को खारिज किया जाता है।”
पति ने क्या कहा?
पति ने अपनी पत्नी की याचिका का विरोध करते हुए अदालत से कहा कि पत्नी की मासिक आय ₹60,000 है और वह खुद अपने खर्चे उठाने में सक्षम है।
पति की ओर से पेश हुए वकील शशांक सिंह ने अदालत को बताया कि पत्नी सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत है और आत्मनिर्भर है, इसलिए उसे गुजारा भत्ता देने का कोई औचित्य नहीं है।
पत्नी ने क्यों मांगा भत्ता?
पत्नी ने अदालत में दलील दी कि उसके पति की मासिक आय ₹1 लाख रुपये है, जो उससे अधिक है। इसलिए उसे गुजारा भत्ता मिलना चाहिए।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की आमदनी को लेकर विवाद को देखते हुए दोनों से उनकी पिछली महीने की सैलरी स्लिप पेश करने को कहा था।
क्या कहता है कानून?
भारत के कानून के तहत, अगर कोई पत्नी आर्थिक रूप से निर्भर है, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार होती है। लेकिन यदि वह आत्मनिर्भर है और उसकी आय पर्याप्त है, तो वह गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती।
इस फैसले से एक मिसाल कायम हुई है कि अगर पत्नी सक्षम और आत्मनिर्भर है, तो पति पर अनावश्यक वित्तीय बोझ नहीं डाला जा सकता।
निचली अदालत और हाईकोर्ट ने भी की थी याचिका खारिज
इस मामले में पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट और निचली अदालत ने भी पत्नी की याचिका खारिज कर दी थी। दोनों अदालतों ने कहा था कि अगर महिला की खुद की आय पर्याप्त है, तो उसे गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता।
जब निचली अदालतों से राहत नहीं मिली, तो महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसकी याचिका खारिज कर दी गई।
क्या है इस फैसले का महत्व?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा। यह उन आत्मनिर्भर महिलाओं के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि यदि वे आर्थिक रूप से सक्षम हैं, तो वे गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकतीं।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि कानून का उद्देश्य केवल महिलाओं को सहारा देना नहीं है, बल्कि न्याय को संतुलित तरीके से लागू करना है।