
पंजाब सरकार के परिवार भलाई विभाग ने प्रदेश के सभी डॉक्टरों के लिए एक अहम दिशा-निर्देश जारी किया है। इसके तहत अब सभी डॉक्टरों को मरीज की दवा की पर्ची (प्रिस्क्रिप्शन) और बीमारी का नाम (डायग्नोसिस) बड़े अक्षरों में या बोल्ड लिखावट में लिखना अनिवार्य किया गया है। यह निर्देश पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा 26 मई 2025 को दिए गए आदेशों के बाद जारी किए गए हैं।
क्यों लिया गया यह फैसला?
परिवार भलाई विभाग के डायरेक्टर द्वारा जारी आधिकारिक पत्र के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मरीज और फार्मासिस्ट को डॉक्टर की लिखी पर्ची को पढ़ने में कोई परेशानी न हो। पहले कई बार ऐसा होता था कि डॉक्टरों की लिखावट अस्पष्ट होने के कारण मरीजों को गलत दवाएं मिल जाती थीं या फार्मासिस्ट को दवा समझने में दिक्कत होती थी। इससे मरीज की सेहत पर बुरा असर पड़ता था।
अब जब पर्ची पर दवा और बीमारी की जानकारी स्पष्ट, बड़े और बोल्ड अक्षरों में लिखी जाएगी, तो इसे पढ़ना आसान होगा और गलती की संभावना कम हो जाएगी।
किन-किन पर लागू होंगे ये निर्देश?
ये दिशा-निर्देश तुरंत प्रभाव से लागू हो गए हैं और पंजाब के सभी:
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सरकारी अस्पतालों
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निजी अस्पतालों
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मेडिकल कॉलेजों
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प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों
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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों
में कार्यरत डॉक्टरों पर यह नियम लागू होगा। इसका मतलब है कि सरकारी के साथ-साथ निजी डॉक्टरों को भी इन निर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा।
क्या पहले से कंप्यूटर पर पर्ची नहीं दी जाती थी?
दरअसल, पहले भी डॉक्टरों को कंप्यूटराइज्ड पर्ची देने के निर्देश दिए गए थे ताकि लिखावट स्पष्ट रहे, लेकिन हर जगह कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए अब यह आदेश दिया गया है कि अगर डॉक्टर हाथ से पर्ची लिख रहे हैं, तो भी दवा और बीमारी की जानकारी बड़े और बोल्ड अक्षरों में होनी चाहिए।
क्या होगी अधिकारियों की भूमिका?
विभाग ने सभी जिलों के सिविल सर्जनों और अन्य संबंधित अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके क्षेत्र के सभी डॉक्टर इन नए नियमों का पालन कर रहे हैं। अगर किसी डॉक्टर की पर्ची अस्पष्ट पाई जाती है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है।
लोगों को क्या मिलेगा फायदा?
इस फैसले से मरीजों को काफी राहत मिलने की उम्मीद है। अब उन्हें डॉक्टर की लिखी पर्ची को बार-बार किसी से पढ़वाने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा दवा की दुकानों पर भी गलत दवा देने की संभावना काफी हद तक कम हो जाएगी।
यह आदेश न केवल मरीजों की सुरक्षा को बढ़ावा देगा, बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को भी मजबूत करेगा। कुल मिलाकर यह एक सराहनीय पहल है जो डॉक्टरों, मरीजों और स्वास्थ्य अधिकारियों—सभी के लिए फायदेमंद साबित होगी।