
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) दिन-ब-दिन और ज्यादा विकसित होती जा रही है। अब यह केवल इंसानी भाषा समझने और जवाब देने तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि अब वह इंसानों जितनी समझदार भी हो चुकी है। हाल ही में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन डिएगो (UCSD) के वैज्ञानिकों ने एक हैरान करने वाला खुलासा किया है। उनकी रिसर्च में दो प्रमुख AI चैटबॉट्स ने ट्यूरिंग टेस्ट को पास कर लिया है। यह वही टेस्ट है जिससे यह तय किया जाता है कि कोई मशीन इंसानों जैसी बुद्धिमता रखती है या नहीं।
क्या है ट्यूरिंग टेस्ट?
ट्यूरिंग टेस्ट का नाम मशहूर ब्रिटिश गणितज्ञ और कंप्यूटर वैज्ञानिक एलन ट्यूरिंग के नाम पर रखा गया है। उन्होंने 1950 में यह टेस्ट प्रस्तावित किया था। इस टेस्ट में किसी इंसान से सवाल पूछे जाते हैं, और वह यह तय करता है कि जवाब देने वाला कोई इंसान है या मशीन। यदि इंसान को यह फर्क पता नहीं चल पाता कि सामने इंसान है या मशीन, तो माना जाता है कि मशीन ने टेस्ट पास कर लिया।
किस AI ने पास किया ट्यूरिंग टेस्ट?
UCSD के वैज्ञानिकों ने चार अलग-अलग AI चैटबॉट्स पर ट्यूरिंग टेस्ट किया:
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GPT-4.5 (OpenAI)
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GPT-4o (OpenAI)
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LLaMa-3.1 (Meta AI)
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Eliza (1960 का एक पुराना चैटबॉट)
इन सभी को इंसानों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार किया गया और फिर विश्वविद्यालय के 126 छात्र और 158 अन्य ऑनलाइन यूजर्स ने इनसे सवाल पूछे। टेस्ट में तीन लोग शामिल थे – एक इंसान, एक AI और एक जांचकर्ता, जिसे यह तय करना था कि दोनों में से इंसान कौन है।
नतीजे रहे चौंकाने वाले
इस परीक्षण में दो चैटबॉट्स ने ट्यूरिंग टेस्ट को इतने अच्छे से पास किया कि जांचकर्ता भी धोखा खा गया। GPT-4.5 ने 73% बार लोगों को यह यकीन दिला दिया कि वह इंसान है, जबकि Meta का LLaMa-3.1 ने 56% मामलों में इंसानी पहचान बनाई।
वहीं दूसरी ओर GPT-4o और Eliza पिछड़ गए। GPT-4o को केवल 21% और Eliza को 23% बार ही इंसान समझा गया। दिलचस्प बात यह रही कि इंसान खुद भी केवल 50% बार ही सही पहचाने जा सके, यानी AI ने इंसानों को भी पछाड़ दिया।
पहली बार किसी AI ने पास किया थ्री-पार्टी ट्यूरिंग टेस्ट
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पहला मौका है जब किसी AI ने थ्री-पार्टी ट्यूरिंग टेस्ट में इतनी सफलता हासिल की है। इसमें इंसान और मशीन दोनों जवाब देते हैं और जांचकर्ता तय करता है कि जवाब देने वाला कौन है। इस टेस्ट को पार करना दिखाता है कि AI अब केवल स्क्रिप्टेड जवाब नहीं देता, बल्कि वह इंसानी सोच की तरह संवाद कर सकता है।
क्या यह खतरे की घंटी है?
AI की इतनी तेजी से बढ़ती क्षमता को लेकर विशेषज्ञ दो धड़ों में बंटे हुए हैं। कुछ का मानना है कि यह तकनीकी तरक्की का बड़ा उदाहरण है, जबकि कुछ का कहना है कि इससे भविष्य में फेक न्यूज़, धोखाधड़ी और साइबर अपराध में इजाफा हो सकता है।
ट्यूरिंग टेस्ट पास करना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, लेकिन इससे जुड़ी जिम्मेदारियां और सतर्कता भी जरूरी हो गई है।
अब AI केवल इंसानों जैसी भाषा ही नहीं बोलती, बल्कि इंसानों जैसी सोच और समझ भी दिखा रही है। GPT-4.5 और LLaMa-3.1 जैसे मॉडल्स ने यह साबित कर दिया है कि मशीनें अब हमारे जैसे व्यवहार करने लगी हैं। यह तकनीक के लिए एक नई शुरुआत है, लेकिन इसके साथ-साथ सोचने का समय भी कि हम AI का सही इस्तेमाल कैसे करें।
भविष्य आ चुका है – और AI इंसानों जितना समझदार भी!