लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को व्यापक बहस और विचार-विमर्श के बाद पेश किया गया। इस प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में 269 सांसदों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया, जबकि 198 सांसदों ने इसके खिलाफ अपनी राय दी। इसके बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सुझाव पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेजने की सिफारिश की।
जेपीसी को क्यों भेजा गया बिल?
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि संविधान संशोधन विधेयक पर समग्र चर्चा और व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “जब यह कैबिनेट के पास चर्चा के लिए आया था, तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सुझाव दिया था कि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए ताकि सभी स्तर पर विस्तृत चर्चा हो सके।”
अमित शाह ने यह भी कहा कि जेपीसी की रिपोर्ट आने के बाद कैबिनेट इस पर विचार करेगी और फिर से संसद में चर्चा होगी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि जेपीसी में सभी मुद्दों पर गहराई से चर्चा की जाएगी, जिससे किसी को भी प्रक्रिया पर संदेह न हो।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी जेपीसी को प्रस्तावित करते हुए कहा कि नियम 74 के तहत इस समिति का गठन किया जाएगा।
विपक्ष का विरोध और दलीलें
विधेयक के पेश होने पर विपक्ष ने सदन में जोरदार हंगामा किया और इसे लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा बताया।
- कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक केवल पहला कदम है। इसका असली मकसद नया संविधान लाना है। संविधान में संशोधन करना एक बात है, लेकिन नया संविधान लाने की कोशिश आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असली मंशा है।”
- कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने इसे “संविधान और लोगों के वोटिंग अधिकार पर हमला” बताया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की भावना को ठेस पहुंचाने वाला यह बिल जल्दबाजी में लाया गया है।
- समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी इस बिल का विरोध करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया।
- सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, “‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक है। यह प्रणाली लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनावों की अवधारणा को कमजोर करेगी।”
विधेयक का उद्देश्य
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का मुख्य उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की प्रक्रिया को लागू करना है। इससे देश में बार-बार होने वाले चुनावों के खर्च और प्रशासनिक बोझ को कम करने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार का मानना है कि यह विधेयक संसाधनों की बचत करेगा और विकास कार्यों में रुकावट को खत्म करेगा।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक के पक्ष और विपक्ष में गहरी बहस छिड़ी हुई है। जहां सरकार इसे प्रशासनिक सुधार और चुनाव खर्च घटाने के लिहाज से जरूरी कदम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे संविधान के मूल ढांचे पर हमला बता रहा है। फिलहाल, इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया है, जहां इस पर व्यापक चर्चा होगी और रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्यवाही की जाएगी।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक पर जेपीसी की रिपोर्ट क्या सिफारिशें पेश करती है और संसद में इसे किस रूप में पारित किया जाता है।