केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) बिल पेश करेंगे। इस बिल को हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिली है। इसके तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान है। यह कदम देश में चुनावी प्रक्रियाओं में बदलाव लाने और खर्च को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
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कैबिनेट से मिली मंजूरी
गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट ने दो प्रमुख विधेयकों को मंजूरी दी:
1. संविधान संशोधन विधेयक: यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अनुमति देता है।
2. विशेष केंद्र शासित प्रदेश विधेयक: दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने के प्रावधान करता है।
यदि यह बिल लागू होता है, तो देशभर में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक ही साल में होंगे।
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समिति की सिफारिशें
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इसमें एक साथ चुनाव कराने के कई लाभ बताए गए, जैसे:
चुनावी प्रक्रिया में सुधार: लगातार चुनावों से प्रशासनिक और वित्तीय भार कम होगा।
राजनीतिक स्थिरता: एक साथ चुनाव कराने से राज्य सरकारों को स्थिरता मिलेगी।
खर्च में कटौती: चुनावी खर्च में भारी कमी आएगी।
हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियां भी हैं, जिन पर समिति ने सुझाव दिए हैं।
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विपक्ष का विरोध
विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। उनका तर्क है कि यह लोकतंत्र के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है। साथ ही, राज्यों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर भी सवाल खड़े किए गए हैं।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और कई अन्य विपक्षी दलों ने कहा है कि अलग-अलग चुनाव देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करते हैं और इससे जनता को अपने मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलता है।
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बीजेपी का एजेंडा
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ लंबे समय से भाजपा के एजेंडे का हिस्सा रहा है।
2014: सत्ता में आने के बाद भाजपा ने इस मुद्दे को प्रमुखता दी।
2017: नीति आयोग ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।
2019: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में इसकी आवश्यकता पर जोर दिया।
बीजेपी का मानना है कि यह कदम सरकार और राजनीतिक दलों दोनों के लिए फायदेमंद होगा। इससे न केवल खर्च में कमी आएगी, बल्कि बार-बार चुनाव के कारण विकास कार्यों में आने वाले व्यवधान भी कम होंगे।
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संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियां
संविधान में संशोधन: अनुच्छेद 83 और 172 के तहत लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल का निर्धारण होता है। इसे संशोधित करने की जरूरत होगी।
सहमति: राज्यों और केंद्र के बीच सामंजस्य बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
तकनीकी तैयारियां: पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए पर्याप्त ईवीएम और वीवीपैट की व्यवस्था करनी होगी।
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‘वन नेशन वन इलेक्शन’ भारत की चुनावी प्रक्रिया में बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधनों के साथ व्यापक राजनीतिक सहमति की आवश्यकता होगी। सोमवार को लोकसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान सभी दलों के विचार महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यह न केवल चुनावी प्रणाली बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे को भी प्रभावित करेगा।