अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर हैं। जैसे भारत में चुनावी प्रक्रिया के अलग-अलग चरण होते हैं, वैसे ही अमेरिका में भी चुनाव कई चरणों में संपन्न होते हैं। इनमें से एक प्रमुख प्रक्रिया है क्रॉस वोटिंग। क्रॉस वोटिंग चुनावी व्यवस्था का एक दिलचस्प पहलू है, जो विभिन्न लोकतांत्रिक देशों में अलग-अलग तरीकों से देखा जा सकता है। इस लेख में हम समझेंगे कि क्रॉस वोटिंग क्या होती है, अमेरिका में इसे लेकर क्या कानून हैं, और यह क्यों होती है।
क्या होती है क्रॉस वोटिंग?
क्रॉस वोटिंग का मतलब होता है कि किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य अपनी ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के बजाय किसी अन्य पार्टी के उम्मीदवार को वोट दे। यह आम तौर पर पार्टी के नियमों के खिलाफ माना जाता है, क्योंकि यह पार्टी अनुशासन का उल्लंघन कर सकता है। लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि कई देशों में वोटिंग का अधिकार व्यक्तिगत होता है, जिससे हर मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार का चुनाव करने की स्वतंत्रता मिलती है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा है, क्योंकि हर व्यक्ति अपनी राय और प्राथमिकताओं के आधार पर मतदान कर सकता है।
अमेरिका में क्रॉस वोटिंग को लेकर कानून
अमेरिका में क्रॉस वोटिंग को लेकर कोई एकरूपता नहीं है। अलग-अलग राज्यों में इसके प्रति भिन्न-भिन्न नियम हैं, जो स्थानीय राजनीतिक व्यवस्था और पार्टी नियमों पर आधारित होते हैं। अमेरिका में प्राइमरी चुनाव के दौरान, क्रॉस वोटिंग को मुख्य रूप से तीन प्रकार की प्राइमरी प्रणाली में देखा जा सकता है:
- ओपन प्राइमरी: ओपन प्राइमरी में कोई भी पंजीकृत मतदाता किसी भी पार्टी की प्राइमरी में वोट दे सकता है। इसका मतलब है कि मतदाता को यह अधिकार होता है कि वह किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को चुने, चाहे वह उस पार्टी का सदस्य हो या न हो। यह व्यवस्था स्वतंत्र और असंबद्ध मतदाताओं को अधिक विकल्प प्रदान करती है।
- क्लोज्ड प्राइमरी: क्लोज्ड प्राइमरी में केवल उसी पार्टी के पंजीकृत सदस्य ही अपनी पार्टी की प्राइमरी में वोट डाल सकते हैं। इस व्यवस्था में, रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य केवल रिपब्लिकन प्राइमरी में वोट दे सकते हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य केवल डेमोक्रेटिक प्राइमरी में। यह व्यवस्था पार्टी अनुशासन और नियंत्रण बनाए रखने के लिए बनाई गई है।
- सेमी-क्लोज्ड प्राइमरी: सेमी-क्लोज्ड प्राइमरी एक मिश्रित व्यवस्था है। इसमें स्वतंत्र मतदाता किसी भी पार्टी की प्राइमरी में वोट डाल सकते हैं, लेकिन पार्टी के पंजीकृत सदस्य केवल अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को ही वोट दे सकते हैं। यह व्यवस्था स्वतंत्र मतदाताओं को एक सीमा तक स्वतंत्रता देती है, जबकि पार्टी सदस्यों को उनकी पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध रखती है।
क्यों होती है क्रॉस वोटिंग?
क्रॉस वोटिंग के कई कारण हो सकते हैं। सबसे प्रमुख कारण होता है असंतोष। कभी-कभी पार्टी के सदस्य अपने पार्टी के उम्मीदवार से संतुष्ट नहीं होते और उन्हें लगता है कि दूसरा उम्मीदवार बेहतर विकल्प हो सकता है। ऐसे में वे क्रॉस वोटिंग के जरिए अपने असंतोष को व्यक्त करते हैं। यह स्थिति तब होती है जब पार्टी के उम्मीदवार की नीति या विचारधारा पार्टी के कुछ सदस्यों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते।
इसके अलावा, कभी-कभी राजनीतिक रणनीति के तहत भी क्रॉस वोटिंग होती है। कुछ परिस्थितियों में, एक पार्टी अपने सदस्यों को दूसरी पार्टी के कमजोर उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित करती है, ताकि उस पार्टी का कमजोर उम्मीदवार आगे बढ़े और मुख्य चुनाव में हारने की संभावना बढ़े। यह रणनीति आमतौर पर उन चुनावों में अपनाई जाती है, जहां पार्टी के सदस्यों की संख्या अधिक होती है और रणनीतिक रूप से मतदान के परिणाम प्रभावित किए जा सकते हैं।
कई मतदाता अपनी स्वतंत्र सोच के कारण भी क्रॉस वोटिंग का निर्णय लेते हैं। हालांकि वे किसी पार्टी के सदस्य होते हैं, लेकिन वे अपनी पसंद के अनुसार वोट देना पसंद करते हैं। उनका मानना होता है कि उन्हें अपने निर्णय लेने का अधिकार है, चाहे वे किसी पार्टी से जुड़े हों या न हों। यह विचारधारा लोकतंत्र के स्वतंत्रता के सिद्धांत के अनुकूल है।
क्रॉस वोटिंग पर अमेरिका में विवाद
अमेरिका में क्रॉस वोटिंग पर अक्सर विवाद होते हैं, खासकर जब इस प्रक्रिया का प्रभाव चुनावी नतीजों पर पड़ता है। कुछ पार्टी सदस्य इसे पार्टी के अनुशासन के खिलाफ मानते हैं और इसे रोकने के प्रयास करते हैं, वहीं कुछ लोग इसे लोकतांत्रिक अधिकार मानते हैं और इसे बनाए रखने की वकालत करते हैं। हालांकि, अधिकतर अमेरिकी राज्यों में चुनाव प्रक्रिया के नियमों में यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है कि मतदाता अपने विवेक के अनुसार मतदान कर सकें, ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी रहें।