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पंजाब सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी सख्त नीति को दोहराते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के नेतृत्व में, राज्य सरकार ने खरड़ के गांव सिऊंक में शमलात जमीन को अवैध रूप से निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित करने के मामले में नायब तहसीलदार वरिंदरपाल सिंह धूत को बर्खास्त कर दिया है।
क्या है पूरा मामला?
पंजाब के अतिरिक्त मुख्य सचिव (ए.सी.एस.) और वित्त आयुक्त राजस्व (एफ.सी.आर.) अनुराग वर्मा ने बताया कि नायब तहसीलदार धूत के खिलाफ यह कार्रवाई एक विस्तृत जाँच के बाद की गई। जाँच में पाया गया कि उन्होंने पंजाब विलेज कॉमन लैंड्स एक्ट, 1961 का उल्लंघन किया था।
धूत ने 28 सितंबर 2016 को इंतकाल नंबर 1767 को मंजूरी दी थी, जिससे खरड़ तहसील के गांव सिऊंक की 10,365 कनाल और 19 मरले शमलात जमीन का मालिकाना हक निजी व्यक्तियों को दे दिया गया था। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 2011 के “जगपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य” मामले में दिए गए आदेशों के खिलाफ था, जिसमें साफ कहा गया था कि शमलात जमीन को निजी लोगों के नाम पर ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
जाँच में क्या सामने आया?
सरकार द्वारा नियुक्त सेवानिवृत्त अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश बी.आर. बांसल की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि धूत ने जानबूझकर अवैध इंतकाल को मंजूरी दी। उन्होंने बिना किसी जांच-पड़ताल के कुछ लोगों के हिस्से बढ़ा दिए और कुछ के घटा दिए। यहां तक कि कुछ ऐसे लोगों को भी जमीन में हिस्सेदार बना दिया गया, जिनका जमीन पर कोई वैध दावा नहीं था।
रिपोर्ट में धूत की मंशा को “दुष्प्रेरित” करार देते हुए कहा गया कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया। इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए एफ.सी.आर. अनुराग वर्मा ने पंजाब सिविल सेवाएं (सजा एवं अपील) नियम, 1970 के तहत उन्हें सरकारी सेवा से बर्खास्त करने का आदेश दिया।
भ्रष्टाचार पर सरकार की सख्ती
यह कार्रवाई तब की गई जब पंजाब सरकार ने हाल ही में सभी डिप्टी कमिश्नरों (डी.सी.) को भ्रष्टाचार और बिना एन.ओ.सी. (No Objection Certificate) के प्लॉटों की रजिस्ट्रेशन में देरी के खिलाफ सख्त चेतावनी दी थी।
पिछले साल नवंबर 2024 में जारी सरकारी आदेशों के बावजूद, प्रदेश के कई हिस्सों में बिना एन.ओ.सी. वाले प्लॉटों की रजिस्ट्रेशन में देरी और भ्रष्टाचार की खबरें सामने आई थीं। इसके बाद, सरकार ने इस पर कड़ा संज्ञान लिया और अधिकारियों को चेतावनी दी कि अगर कोई इसमें शामिल पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
पहले भी हो चुकी हैं सख्त कार्रवाईयां
यह पहली बार नहीं है जब भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई हो। इससे पहले भी एफ.सी.आर. अनुराग वर्मा ने लुधियाना के तहसीलदार रणजीत सिंह को निलंबित किया था।
रणजीत सिंह पर आरोप था कि उन्होंने लुधियाना के जगाराओं में संपत्ति दस्तावेज़ों की फर्जी रजिस्ट्रेशन की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने शाम 5:12 बजे जगाराओं में एक दस्तावेज़ रजिस्टर्ड किया और सिर्फ चार मिनट बाद, 5:16 बजे लुधियाना में दूसरा दस्तावेज़ पंजीकृत कर दिया। यह मानवीय रूप से संभव ही नहीं था, जिससे उनकी धोखाधड़ी पकड़ी गई।
पारदर्शिता बढ़ाने के लिए तकनीकी कदम
भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार ने एक और अहम कदम उठाया है। अब प्रदेश के सभी सब-रजिस्ट्रार और जॉइंट सब-रजिस्ट्रार कार्यालयों में चार सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाए जाएंगे।
सरकार ने सभी डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया है कि वे इन कैमरों की लाइव फीड की निगरानी करें और यह सुनिश्चित करें कि अधिकारी अपने कार्यालयों में मौजूद रहें। इससे नागरिकों को बिना वजह देरी और भ्रष्टाचार से बचाया जा सकेगा।
सरकार का स्पष्ट संदेश
मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की सरकार ने साफ कर दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी। कोई भी अधिकारी या कर्मचारी, चाहे वह कितना भी बड़ा हो, अगर भ्रष्टाचार में शामिल पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
इस तरह की सख्त कार्रवाइयों से सरकार यह संदेश दे रही है कि अब भ्रष्टाचारियों की खैर नहीं। आने वाले समय में और भी कड़े कदम उठाए जा सकते हैं ताकि प्रशासनिक कामकाज पारदर्शी और जनता के हित में हो।