
पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर एक बार फिर विवाद गरमा गया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। मुद्दा है सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) से हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने की मांग का।
क्या है मामला?
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने हरियाणा के कई इलाकों में पीने के पानी की भारी किल्लत की बात कही और पंजाब से 8500 क्यूसेक पानी की मांग की। उनका कहना है कि पहले भी गर्मियों में हरियाणा को मई-जून के दौरान 9500 क्यूसेक तक पानी मिलता रहा है।
लेकिन पंजाब सरकार ने यह मांग मानने से साफ इनकार कर दिया। पंजाब के जल संसाधन विभाग ने कहा कि इस समय बांधों में पानी की स्थिति काफी खराब है, और पंजाब में भी मांग बहुत बढ़ गई है, इसलिए अतिरिक्त पानी देना संभव नहीं है।
राजनीति और बयानबाज़ी
इस मुद्दे पर राजनीति भी खूब गर्मा गई है। हरियाणा के मुख्यमंत्री जहां दावा कर रहे हैं कि आने वाली सरकार पंजाब में भाजपा की ही होगी, वहीं वे पंजाब से पानी मांग रहे हैं और SYL नहर के पुनर्निर्माण पर अड़े हुए हैं। इससे पंजाब के नेताओं को यह दोहरी राजनीति लग रही है।
भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाया कि वह BBMB के जरिए हरियाणा को ज्यादा पानी दिलवाने की कोशिश कर रही है, जो कि पंजाब के साथ अन्याय है।
BBMB की बैठक में क्या हुआ?
23 अप्रैल 2025 को BBMB ने एक बैठक बुलाई थी जो कि बांधों की सुरक्षा को लेकर थी, लेकिन असल मुद्दा हरियाणा को 8500 क्यूसेक अतिरिक्त पानी देना था। इस पर भी बहस हुई और पंजाब सरकार ने साफ कह दिया कि पानी की स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए अतिरिक्त पानी देना संभव नहीं।
BBMB चेयरमैन ने दोनों राज्यों को आपसी सहमति से इस मुद्दे को सुलझाने की सलाह दी। राजस्थान के जल संसाधन सचिव अभय कुमार सिंह भी वीडियो कॉन्फ्रेंस से इसमें शामिल हुए।
अब तक कितना पानी मिला किसे?
वर्तमान वित्तीय वर्ष (2024-25) में:
हरियाणा को 2.987 एमएएफ (MAF) पानी आवंटित किया गया था, लेकिन उसने अब तक 3.091 एमएएफ उपयोग कर लिया है यानी 103%, यानी 3% ज्यादा पानी ले चुका है।
पंजाब को 5.512 एमएएफ मिलना था, लेकिन उसे अब तक केवल 4.925 एमएएफ मिला है, यानी 11% कम मिला।
राजस्थान को 3.398 एमएएफ मिलना था, लेकिन उसे 3.738 एमएएफ मिला है यानी 110% यानी 10% ज्यादा।
पंजाब की आपत्तियां
पंजाब सरकार का कहना है:
भाखड़ा, पौंग और रंजीत सागर जैसे प्रमुख बांधों में इस समय पानी का स्तर सामान्य से काफी नीचे है।
पौंग डैम मरम्मत के चलते 45 दिन के लिए बंद है।
राज्य ने अपनी नहरों और ड्रेनों को फिर से चालू किया है, जिससे राज्य में खुद पानी की मांग बहुत बढ़ गई है।
पंजाब को भी आने वाले खरीफ (धान) सीजन के लिए पानी की सख्त ज़रूरत है..
बांधों की स्थिति – 26 अप्रैल 2025 तक
1. भाखड़ा बांध
अधिकतम जल स्तर: 1680 फीट
वर्तमान जल स्तर: 1557.1 फीट
पिछले साल इसी तारीख को: 1569.15 फीट
इस साल पिछले साल से 12.05 फीट कम जल स्तर है।
2. पौंग डैम
अधिकतम जल स्तर: 1390 फीट
वर्तमान जल स्तर: 1293.73 फीट
पिछले साल इसी तारीख को: 1325.83 फीट
इस साल पिछले साल से 32.1 फीट कम जल स्तर है।
3. रणजीत सागर डैम
अधिकतम जल स्तर: 1732 फीट
वर्तमान जल स्तर: 1642.59 फीट
पिछले साल इसी तारीख को: 1663.12 फीट
इस साल पिछले साल से 20.53 फीट कम जल स्तर है।
इससे साफ है कि बांधों का जलस्तर सामान्य से नीचे है, और यदि अतिरिक्त पानी छोड़ा गया, तो आने वाली खेती के लिए गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
हरियाणा की मांग कितनी जायज?
हरियाणा ने पहले कहा था कि उसे केवल पेयजल के लिए पानी चाहिए। उस आधार पर पंजाब ने 6 अप्रैल से रोज़ 4000 क्यूसेक पानी देना शुरू किया और अब तक यह जारी है। लेकिन अब हरियाणा ने 8500 क्यूसेक की मांग रखी है, जो पंजाब के अनुसार व्यावहारिक नहीं है:
1. हरियाणा पहले ही अपने हिस्से का पानी खत्म कर चुका है।
2. बीएमएल नहर की कुल क्षमता 10,000 क्यूसेक है, जिसमें से हरियाणा को केवल 70% हिस्सेदारी मिलती है।
3. 8500 क्यूसेक नहर की क्षमता से भी ज्यादा है।
4. इससे पंजाब की ज़रूरतों पर असर पड़ेगा और आने वाले महीनों में संकट और बढ़ सकता है।
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सारांश :
हरियाणा के मुख्यमंत्री ने पंजाब से 8500 क्यूसेक पानी की मांग की है, जबकि पंजाब सरकार पहले से ही 4000 क्यूसेक दे रही है।
हरियाणा ने इस साल अपने हिस्से से ज्यादा पानी पहले ही इस्तेमाल कर लिया है।
पंजाब की स्थिति भी गंभीर है – बांधों में पानी कम है और खुद उसे खेती के लिए जरूरत है।
BBMB ने विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की सलाह दी है।
राजनीतिक बयानबाज़ी तेज है – दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
यह मामला सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि राजनीति और संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। आने वाले दिनों में इस पर क्या हल निकलता है, यह देखना दिलचस्प होगा।