
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) जल्दी ही गोल्ड लोन को लेकर एक नया नियम लागू करने जा रहा है। इस नए नियम का मकसद गोल्ड लोन से जुड़ी प्रक्रिया को ज़्यादा सुरक्षित और पारदर्शी बनाना है। हालांकि, इन प्रस्तावित नियमों को लेकर देश के कुछ हिस्सों में विरोध भी देखने को मिल रहा है, खासकर तमिलनाडु में।
क्या है RBI का प्रस्ताव?
RBI ने 9 अप्रैल को गोल्ड लोन से जुड़े ड्राफ्ट दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके तहत यह सुझाव दिया गया कि गोल्ड लोन की “लोन टू वैल्यू” (LTV) सीमा 75% तक ही रखी जाए। इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई व्यक्ति 1 लाख रुपये की कीमत का सोना गिरवी रखता है, तो उसे अधिकतम 75 हजार रुपये तक ही लोन मिल सकेगा।
इस प्रस्ताव का उद्देश्य है कि लोन देने की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जाए, लोन के इस्तेमाल पर निगरानी रखी जाए और पूरे सिस्टम को ज़्यादा मज़बूत किया जाए।
छोटे ग्राहकों को मिल सकती है छूट
केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय ने RBI को सुझाव दिया है कि छोटे ग्राहकों को इन कड़े नियमों से छूट मिलनी चाहिए। मंत्रालय ने कहा है कि जिन लोगों ने 2 लाख रुपये तक का गोल्ड लोन लिया है, उन्हें ‘छोटा कर्ज़दार’ माना जाए और इन पर नए नियम लागू न किए जाएं।
इस कदम से छोटे किसान, ग्रामीण इलाकों के लोग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग बिना किसी परेशानी के समय पर कर्ज़ ले सकेंगे। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मदद मिलेगी।
नए नियम कब से लागू होंगे?
RBI फिलहाल इस ड्राफ्ट पर देशभर से सुझाव इकट्ठा कर रहा है। इन नियमों को 1 जनवरी, 2026 से लागू करने की योजना है। उम्मीद है कि अंतिम नियम बनाते समय सभी पक्षों की चिंताओं को ध्यान में रखा जाएगा।
तमिलनाडु में विरोध क्यों?
तमिलनाडु की कई राजनीतिक पार्टियों और किसान संगठनों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका कहना है कि ये नियम खासकर छोटे किसानों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो ज़रूरत के समय गोल्ड लोन पर निर्भर रहते हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस मामले में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी भी लिखी है। उन्होंने बताया कि ये सख्त नियम खेती-किसानी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाल सकते हैं।
RBI का मकसद नियमों को सख्त कर गोल्ड लोन सिस्टम को मज़बूत करना है, लेकिन इसके साथ-साथ छोटे और जरूरतमंद ग्राहकों की सुविधा भी ज़रूरी है। अगर छोटे कर्ज़दारों को छूट मिलती है, तो इससे ना सिर्फ किसान बल्कि पूरे ग्रामीण भारत को राहत मिल सकती है। अब देखना होगा कि अंतिम दिशा-निर्देश बनाते समय RBI किस तरह से संतुलन बनाता है।