भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए देश की आर्थिक विकास दर (GDP) के अनुमान में कटौती कर सबको चौंका दिया है। यह फैसला देश और दुनिया के आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए लिया गया है। इस घोषणा के बाद न केवल बाजार में चिंता का माहौल बना है, बल्कि यह सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन सकती है। RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के बाद यह जानकारी दी।
GDP अनुमान में कटौती: अब 6.6% पर
रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए GDP ग्रोथ का अनुमान 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया है। यह फैसला महंगाई के बढ़ते आंकड़ों, दूसरी तिमाही में कमजोर GDP ग्रोथ, और वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि आर्थिक विकास के रास्ते में आ रही चुनौतियों को देखते हुए यह कदम उठाना आवश्यक था।
वित्त वर्ष 2024-25 की तिमाहियों में GDP का अनुमान
वर्तमान वित्त वर्ष की बची हुई तिमाहियों में GDP ग्रोथ के आंकड़ों पर नजर डालें तो अक्टूबर-दिसंबर (तीसरी तिमाही) में यह 6.8% और जनवरी-मार्च (चौथी तिमाही) में 7.2% रहने का अनुमान है। इस तिमाही दर में मामूली बढ़ोतरी की उम्मीद जताई गई है, लेकिन दूसरी तिमाही में कमज़ोर ग्रोथ (6.3%) का असर सालाना औसत पर पड़ा है।
अगले वित्त वर्ष के लिए भी चुनौती बरकरार
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भी RBI ने पहले और दूसरे तिमाही के अनुमान पेश किए। पहली तिमाही में GDP ग्रोथ 6.9% और दूसरी तिमाही में 7.3% रहने का अनुमान लगाया गया है। हालाँकि, इन अनुमानों के पीछे वैश्विक और घरेलू अनिश्चितताओं को एक बड़ा कारक माना जा रहा है।
रेपो रेट 6.5% पर स्थिर
मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया है। छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में कोई बदलाव न करने के पक्ष में वोट दिया। इस फैसले से यह संकेत मिलता है कि RBI फिलहाल अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने पर जोर दे रहा है, जबकि महंगाई पर काबू पाने के लिए नीतिगत कदमों को धीमी गति से आगे बढ़ाने की रणनीति अपनाई जा रही है।
महंगाई और वैश्विक चुनौतियां
महंगाई के बढ़ते आंकड़े देश के आर्थिक विकास के लिए प्रमुख चुनौती बने हुए हैं। RBI का मानना है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में अस्थिरता और कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव महंगाई को बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव और कमजोर मांग भी विकास को प्रभावित कर रही है।
गवर्नर दास ने यह भी कहा कि दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मौजूदा आर्थिक स्थिति को लेकर सतर्क हैं। उन्होंने कहा, “वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएं और मुद्रास्फीति नियंत्रण में मुश्किलें सभी देशों के लिए बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं।”
बाजार और सरकार पर प्रभाव
RBI के इस कदम से बाजार और सरकार पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है। जहां सरकार के लिए विकास की धीमी गति एक राजनीतिक और आर्थिक चुनौती बन सकती है, वहीं बाजार में भी निवेशकों की धारणा कमजोर हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि RBI के GDP अनुमान में कटौती से सरकार पर खर्च बढ़ाने और निजी निवेश को बढ़ावा देने का दबाव बढ़ेगा। साथ ही, अगर अगले कुछ महीनों में महंगाई पर काबू नहीं पाया गया, तो यह आर्थिक सुधार के प्रयासों को और जटिल बना सकता है।
RBI का GDP अनुमान घटाने का फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मौजूदा चुनौतियों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। महंगाई, भू-राजनीतिक तनाव और कमजोर वैश्विक मांग देश की आर्थिक विकास दर को प्रभावित कर रहे हैं। हालाँकि, रेपो रेट को स्थिर रखने और मौद्रिक नीति में संतुलन बनाए रखने का फैसला यह संकेत देता है कि RBI आर्थिक स्थिरता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
सरकार और RBI के लिए आगे की राह चुनौतीपूर्ण होगी। इन परिस्थितियों में घरेलू मांग को प्रोत्साहित करना, निजी निवेश को बढ़ावा देना और महंगाई को नियंत्रित करना प्राथमिकता होनी चाहिए।