
मंगलवार को विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 65 पैसे की मजबूती के साथ 86.13 पर पहुँच गया। यह मजबूती कई वजहों से देखने को मिली, जिनमें ईरान और इज़राइल के बीच युद्धविराम की उम्मीदें, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट, घरेलू शेयर बाजार की शानदार शुरुआत और डॉलर की कमजोरी शामिल हैं।
सोमवार को रुपया 23 पैसे गिरकर 86.78 के स्तर पर बंद हुआ था, जो पिछले पांच महीनों का सबसे निचला स्तर था। लेकिन मंगलवार की शुरुआत में ही अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 86.07 पर खुला और कुछ ही समय बाद यह 86.13 तक मजबूत हो गया।
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का असर
वैश्विक तेल बाजार में भी नरमी देखी गई। ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स की कीमत 2.73% गिरकर 69.53 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई। इसका सीधा असर भारत जैसे तेल आयातक देश की मुद्रा पर पड़ता है, क्योंकि तेल सस्ता होने से आयात बिल कम होता है और रुपया मजबूत होता है।
युद्धविराम की संभावनाओं से मिली राहत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दिए गए बयान के बाद कि ईरान और इज़राइल युद्धविराम के लिए तैयार हैं, वैश्विक बाजारों में सकारात्मक माहौल बन गया। निवेशकों को यह उम्मीद जगी है कि मध्य पूर्व में हालिया तनाव अब कम होगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों को राहत मिलेगी।
डॉलर इंडेक्स में गिरावट
छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की ताकत दिखाने वाला डॉलर इंडेक्स 0.29% गिरकर 98.13 पर बंद हुआ। इसका सीधा फायदा अन्य मुद्राओं को हुआ, जिसमें रुपया भी शामिल है।
घरेलू शेयर बाजार में जोरदार तेजी
घरेलू शेयर बाजारों ने भी मंगलवार को अच्छी शुरुआत की। बीएसई सेंसेक्स 930.7 अंकों की उछाल के साथ 82,827.49 पर पहुँच गया, जबकि निफ्टी 278.95 अंकों की तेजी के साथ 25,250.85 पर पहुँचा। शेयर बाजारों की इस मजबूती ने भी रुपये को सहारा दिया।
विदेशी निवेशकों का रुख
हालांकि, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने सोमवार को भारतीय शेयर बाजार से 1,874.38 करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री की थी। इसके बावजूद मंगलवार को बाजार में तेजी देखी गई, जो बताता है कि घरेलू निवेशकों का विश्वास फिलहाल मजबूत है।
इस समय भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय हालात और घरेलू आर्थिक संकेतकों के हिसाब से सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है। यदि ईरान-इज़राइल के बीच युद्धविराम होता है और कच्चे तेल की कीमतें नीचे बनी रहती हैं, तो निकट भविष्य में भी रुपये की स्थिति मजबूत बनी रह सकती है। निवेशकों को अब आगे के वैश्विक राजनीतिक घटनाक्रम और अमेरिका में ब्याज दरों से जुड़े फैसलों पर नजर रखनी होगी।