
शिरोमणि अकाली दल का नया अध्यक्ष कौन होगा, इसका फैसला 12 अप्रैल को अमृतसर के तेजा सिंह समुंदरी हॉल में होने जा रहा है। इस महत्वपूर्ण बैठक पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। हालांकि पार्टी के मौजूदा नेता सुखबीर सिंह बादल के फिर से अध्यक्ष बनने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन कुछ और नाम भी इस दौड़ में माने जा रहे हैं।
कौन-कौन हैं दावेदार?
सबसे पहला नाम है सुखबीर सिंह बादल का, जो 2008 से पार्टी की कमान संभाले हुए हैं। लेकिन हाल ही में पार्टी के अंदर और बाहर से यह सवाल उठने लगे हैं कि अकाली दल अब एक परिवार तक सिमट कर रह गया है। विरोधियों का आरोप है कि सुखबीर पार्टी को लोकतांत्रिक ढंग से नहीं चलाते।
पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने हाल ही में कहा था कि अकाली दल अब बहस की नहीं, बल्कि वफादारी की पार्टी बन चुकी है। इसीलिए नए प्रधान को लेकर उम्मीदें और चर्चा दोनों तेज हैं।
बलविंदर सिंह भुंदर: शांत लेकिन मज़बूत नेता
फिलहाल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंदर को काफी समर्थन मिल रहा है। वे एक शांत, विवादों से दूर रहने वाले और समर्पित नेता माने जाते हैं। उन्होंने हमेशा पार्टी के हितों को प्राथमिकता दी है और संगठन के प्रति वफादारी निभाई है। इसलिए कई लोग मानते हैं कि उन्हें पूर्ण अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
डॉ. दलजीत सिंह चीमा: अनुभव और नज़दीकी का मेल
एक और मज़बूत दावेदार हैं डॉ. दलजीत सिंह चीमा। वे लंबे समय से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं और कई जिम्मेदारियाँ निभा चुके हैं। पार्टी में जब भी संकट आया, वह बादल परिवार के साथ मज़बूती से खड़े रहे। उनकी वफादारी और अनुभव को देखते हुए उन्हें भी अध्यक्ष की कुर्सी मिल सकती है।
हरसिमरत कौर बादल: महिला नेतृत्व की उम्मीद
हरसिमरत कौर बादल का नाम भी चर्चा में है। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री रही हैं और फिलहाल पार्टी की एकमात्र सांसद हैं। अगर उन्हें अध्यक्ष बनाया गया, तो वे शिरोमणि अकाली दल की पहली महिला प्रधान बनेंगी। वे संसद में पंजाब से जुड़े मुद्दों को ज़ोरदार तरीके से उठाने के लिए जानी जाती हैं।
हरसिमरत कौर का न केवल ससुराल पक्ष बल्कि मायका पक्ष भी पंजाब की राजनीति में प्रभावशाली रहा है, जिससे उनका सियासी वजन और बढ़ जाता है।
बिक्रम सिंह मजीठिया: नौजवानों की पसंद
बिक्रम सिंह मजीठिया, जिन्हें माज्हे का जर्नल कहा जाता है, भी दावेदारी में शामिल हैं। वे एक तेज़-तर्रार और जोशीले नेता माने जाते हैं। पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। हालांकि हाल ही में उनके और सुखबीर बादल के बीच मतभेद की खबरें आई थीं, लेकिन बाद में दोनों के बीच सुलह हो गई।
क्या फिर से होंगे सुखबीर प्रधान?
हालांकि तमाम चर्चाओं और संभावनाओं के बीच अभी भी सुखबीर बादल का नाम सबसे आगे माना जा रहा है। लेकिन अगर उन्हें फिर से प्रधान बनाया जाता है, तो विरोधियों को फिर से ‘परिवारवाद’ का मुद्दा उठाने का मौका मिल जाएगा।
अब देखना ये है कि पार्टी अंदरूनी दबाव और सार्वजनिक छवि के बीच क्या संतुलन बनाती है और किसे अपना नया नेता चुनती है। 12 अप्रैल का दिन पार्टी के भविष्य के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।