
शनिवार को संयुक्त कार्य समिति (JAC) की बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार के सीटों की नई सीमा (delimitation) तय करने के फैसले को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। इस बैठक में चार राज्यों के मुख्यमंत्री और तीन अन्य राज्यों के राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए। बैठक का आयोजन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने किया था।
भगवंत मान ने कहा, “बीजेपी जानबूझकर उन राज्यों की लोकसभा सीटें कम कर रही है, जहां उसे जीतने की संभावना नहीं है। यह लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश है, जिसे हम कामयाब नहीं होने देंगे।”
बैठक में यह मांग उठाई गई कि केंद्र सरकार को आगामी 25 वर्षों तक सीटों के पुन: निर्धारण (delimitation) की प्रक्रिया को टाल देना चाहिए।
बीजेपी की रणनीति पर सवाल
भगवंत मान ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार विपक्ष को खत्म करने के लिए यह कदम उठा रही है। उन्होंने कहा, “बीजेपी उन राज्यों में सीटें बढ़ाना चाहती है, जहां वह मजबूत है, और दक्षिण भारत में सीटें घटाना चाहती है। यह सरासर अन्याय है। दक्षिणी राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण लागू करने की सजा दी जा रही है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटें 80 से बढ़ाकर 140 से ज्यादा करने की योजना बनाई जा रही है। इससे बीजेपी को फायदा होगा क्योंकि वे अपने गढ़ में सीटों को बांटकर ज्यादा जीतने लायक बना देंगे।
भगवंत मान ने इस फैसले को “असहनीय, अनुचित और अस्वीकार्य” करार दिया और कहा कि इसे पूरी ताकत से रोका जाएगा।
पंजाब पर असर
मुख्यमंत्री मान ने कहा कि इस नए सिस्टम के तहत पंजाब की सीटें 13 से बढ़कर 18 तो हो जाएंगी, लेकिन लोकसभा में राज्य का प्रतिनिधित्व प्रतिशत घटकर 2.39% से 2.11% हो जाएगा। यानी, सीटें बढ़ने के बावजूद पंजाब का राजनीतिक प्रभाव कम हो जाएगा।
आंदोलन की तैयारी
भगवंत मान ने साफ कहा कि इस फैसले के खिलाफ सभी समान विचारधारा वाले दलों के साथ मिलकर आंदोलन किया जाएगा। उन्होंने सभी दलों को अगली बैठक पंजाब में आयोजित करने का न्योता भी दिया।
क्या है विवाद?
सीटों की नई सीमा तय करने का मुख्य उद्देश्य आबादी के अनुसार संसदीय क्षेत्रों का पुनर्गठन करना है। लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों का कहना है कि वे जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू कर चुके हैं, इसलिए उनके यहां सीटें कम करना अन्याय है। वहीं, उत्तरी राज्यों में सीटें बढ़ाने से सत्ता संतुलन पूरी तरह बीजेपी के पक्ष में जा सकता है।
अब देखना यह होगा कि क्या केंद्र सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करती है या नहीं। लेकिन एक बात तय है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में बड़ा राजनीतिक विवाद बन सकता है।