
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। हाल ही में किए गए SpaDex (स्पेस डॉकिंग प्रयोग) मिशन में इसरो ने अपनी दो सैटेलाइट्स के बीच एक अनोखा परीक्षण किया। इस प्रयोग में सैटेलाइट को चारों तरफ घुमाया गया और फिर उसे उसकी पुरानी स्थिति में वापस लाया गया। इसे “रोलिंग या रोटेटिंग” परीक्षण कहा जा रहा है।
क्या है यह प्रयोग?
आसान शब्दों में कहें तो यह समझना कुछ ऐसा है जैसे दो दोस्त किसी दुकान के सामने मिलते हैं और गले लगते हैं—इसे डॉकिंग कहते हैं। फिर उनमें से एक थोड़ा पीछे हटता है लेकिन सामने ही रहता है—इसे अनडॉकिंग कहा जाता है। अब अगर वह दोस्त आपके चारों तरफ घूमकर फिर उसी जगह आ जाए, तो यही इसरो ने SpaDex मिशन में किया है। इस प्रयोग में एक सैटेलाइट दूसरी के चारों तरफ घूमी और फिर वापस अपनी पुरानी पोजीशन पर आ गई।
कैसे किया गया परीक्षण?
इस प्रयोग को सफलतापूर्वक करने के लिए इसरो ने एडवांस सॉफ्टवेयर, सेंसर और पोजिशनिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया। इस मिशन का उद्देश्य यह जांचना था कि सैटेलाइट को दूर से नियंत्रित कर सही स्थिति और गति में रखा जा सकता है या नहीं। यह प्रयोग 13 मार्च को दोनों सैटेलाइट्स के अलग होने के बाद किया गया।
इस मिशन का क्या फायदा होगा?
इस परीक्षण से इसरो को भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। खासकर जब कोई अंतरिक्ष यान किसी ग्रह की कक्षा में डॉकिंग करेगा या चंद्रमा से धरती पर नमूने लाने होंगे, तब यह तकनीक बहुत काम आएगी।
1. गगनयान मिशन: भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन में स्पेसक्राफ्ट को डॉकिंग करनी होगी, जिसके लिए यह तकनीक जरूरी है।
2. चंद्रयान-4: भविष्य में इस मिशन के तहत चंद्रमा से सैंपल लाने की योजना है, जिसमें डॉकिंग और रोटेशन तकनीक का उपयोग होगा।
3. अन्य स्पेस मिशन: मंगल, शुक्र और अन्य ग्रहों के लिए होने वाले मिशनों में भी इस तकनीक से मदद मिलेगी।
सैटेलाइट में बचा है काफी ईंधन
इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने बताया कि इस प्रयोग को सफलतापूर्वक पूरा किया गया और अभी सैटेलाइट में पर्याप्त ईंधन बचा हुआ है। इसलिए टीम को निर्देश दिया गया है कि हर प्रयोग को पहले ज़मीन पर सिमुलेशन के जरिए परखा जाए ताकि अधिकतम डेटा हासिल किया जा सके और कोई गलती न हो।
आगे क्या होगा?
SpaDex मिशन के तहत इसरो अगले महीने एक और डॉकिंग परीक्षण करने की योजना बना रहा है। इस बार एक नया प्रयोग किया जाएगा, जिसमें दो सैटेलाइट्स के बीच ऊर्जा (पावर) ट्रांसफर करने की कोशिश होगी। यह परीक्षण यह समझने में मदद करेगा कि भविष्य में स्पेसक्राफ्ट्स को लंबवत (वर्टिकली) डॉकिंग करने में कितनी सफलता मिल सकती है।
SpaDex मिशन की यह सफलता भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी को नई ऊंचाइयों तक ले जा रही है। इस तरह के परीक्षण भविष्य में अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने और ग्रहों से सैंपल वापस लाने जैसे मिशनों के लिए बहुत जरूरी हैं। इसरो अपने हर मिशन से नई तकनीकें विकसित कर रहा है, जिससे भारत दुनिया की अग्रणी स्पेस एजेंसियों में शामिल हो रहा है।